जब संयुक्त पंजाब के विशाल क्षेत्र में से हरियाणा राज्य के
गठन की मांग उठने लगी तो पंजाबी क्षेत्र के अति चतुर नेताओं ने
पंजाब राज्य के अधिकांश बजट को (वर्तमान) पंजाब के विकास हेतू
लगाना शुरू कर दिया और हरियाणवी क्षेत्र के साथ भेदभाव बरता
जाने लगा। संयुक्त पंजाब में से कुल 44212 वर्ग किलोमीटर जमीन
का वह टुकडा, जिसका कुछ भाग बंजर तथा अधिकांश भाग अविकसित था,
को हरियाणा प्रदेश का नाम देकर 1 नवंबर 1966 अलग कर दिया।
संयुक्त पंजाब के हरियाणावी विधानसभा क्षेत्र झज्जर के विधायक
पंडित भगवत दयाल शर्मा ने एक नवंबर 1966 को नवगठित प्रदेश
हरियाणा की बागडोर संभाली। पूरे प्रदेश की जनता को वरिष्ठ व
अनुभवी नेता के तौर पर पंडित जी से पूर्ण उम्मीद थी कि उनके
सफल नेतृत्व में हरियाणा नई बुलन्दियों को छूएगा। हरियाणा गठन
के मात्र 3 महीने 21 दिन के पश्चात हरियाणा प्रदेश का पहला
विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें 48 सीटें प्राप्त कर कांग्रेस ने
पंडित भगवत दयाल शर्मा के नेतृत्व में पुनः सरकार बनाई, लेकिन
चाटूकारों के जाल में फंसे पंडित जी को पता नहीं चल पाया, कि
उनकी कुर्सी छीनने की योजना को मूर्त रूप दिया जा रहा है।
प्रथम विधानसभा चुनावों में यमुनानगर से विधायक बनने के पश्चात
10 मार्च 1967 को पुनः गद्दीनशीं होने का जश्न मना रहे पंडित
जी को मात्र 13 दिन के बाद ही गद्दीविहीन कर दिया गया। इन 13
दिनों में जो सियासी हथकंडे अपनाएं गए उन्हें देख-सुन पूरा देश
स्तब्ध रह गया। 24 मार्च 1967 को हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष
राव विरेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री बन प्रदेश की कमान संभाली।
हरियाणवी संस्कृति के प्रबल पक्षधर राव विरेंद्र सिंह को उनके
'सहयोगी' दल- बदलू व अफसरवादी मित्रों ने चैन की सांस नहीं लेने
दी। राव साहब के शासनकाल में दल-बदल चरम पर था। हरियाणा की
राजनीति 'आया राम-गया राम' के नाम से कुविख्यात हुई। मात्र 7
महीने 27 दिन के भीतर राव विरेंद्र सिंह को कुर्सी छोड़नी पड़ी।
प्रदेश को बुलन्दियों पर पहुंचाने के चाहवान दो मुख्यमंत्रियों
की अवसरवादियों द्वारा राजनीतिक बलि लेने के पश्चात 21 नवंबर
1967 को राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राष्ट्रपति शासन के
दौरान 12 मई 1968 को मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को
बहुमत प्राप्त हुआ, लेकिन चुनाव नतीजों के पश्चात विधायकों में
खींचतान आरंभ हो गई। स्थिति को भांपते हुए कांग्रेस हाईकमान ने
मामले को सुलझाने हेतु श्री गुलजारी लाल नंदा व पंडित भगवत
दयाल शर्मा को अधिकृत किया। एक सप्ताह से अधिक समय तक लंबी
बैठकें हुई। आम सहमति बनती-बिगड़ती गई। आखिर चौधरी बंसीलाल के
नाम पर सहमति बनी। उल्लेखनीय है कि उस दौरान चौधरी बंसीलाल
अधिक लोकप्रिय व चर्चित नेता नहीं थे, लेकिन नंदा जी से
नजदीकियों के कारण चौधरी बंसीलाल की लॉटरी खुली, जिसे सुन
प्रदेश वासी हतप्रभ रह गए।
चौधरी बंसीलाल ने प्रदेश में चल रहे 6 माह के राष्ट्रपति शासन
के पश्चात 21 मई 1968 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अपने कुशल
नेतृत्व से चौधरी बंसीलाल ने 'आया राम-गया राम' वाली राजनीति
पर नकेल कसी और प्रदेश के विकास के लिए सराहनीय कार्य किये।
उनके सफल नेतृत्व में वर्ष 1972 में प्रदेश विधानसभा के आम
चुनाव हुए, जिसमें चौधरी बंसीलाल पुनः मुख्यमंत्री बने। दबंग
छवि व कुशल प्रशासक के रूप में चौधरी बंसीलाल ने अफसरशाही पर
लगाम कसते हुए हरियाणा का कायाकल्प किया तथा केन्द्रीय सरकार
में भी अपनी मजबूत पकड़ बनाई।
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें अपना
विश्वस्त मानते हुए केंद्र में बुला लिया और उन्हें रक्षा
मंत्रालय की कमान सौंपी। केंद्र से बुलावा आने पर भी चौधरी
बंसीलाल ने हरियाणा की राजनीति में भी अपना दबदबा बरकरार रखा।
दिनांक 01 दिसम्बर 1975 को उन्होंने अपनी राजगद्दी अपने अति
विश्वसनीय श्री बनारसीदास गुप्ता को सौंपी। श्री गुप्ता, चौ.
बंसीलाल के मार्गदर्शन में प्रदेश की जनता की सेवा करने लगे,
लेकिन लोकनायक जयप्रकाश के नेतृत्व में चले देश व्यापी आंदोलन
व आपातकाल की घोषणा के चलते प्रदेश में 29 अप्रैल 1977 से 20
जून 1977 तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा। आपातकाल का संपूर्ण
भारतवर्ष में घोर विरोध हुआ, जिसके चलते 1977 के लोकसभा चुनावों
में कांग्रेस का सफाया हो गया। केंद्र में जनता सरकार के गठन
के साथ ही प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया, लेकिन जून
माह में प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जनता पार्टी को भारी
बहुमत प्राप्त हुआ और 21 जून 1977 को चौ. देवी लाल ने प्रदेश
की कमान संभाली। प्रदेश की जनता एक ईमानदार, जुझारू,
कर्तव्यनिष्ठ, किसान नेता के प्रदेश का मुख्यमंत्री के रूप में
देख प्रसन्न थी। स्वच्छ छवि के चौ. देवीलाल ने किसान हितैषी के
रूप में ख्याति प्राप्त की, लेकिन कुछ ही माह बीतने पर चौ.
देवीलाल के विरुद्ध कुछ विधायकों ने बिगुल बजा दिया। एक अति
महवाकांक्षी मंत्री द्वारा असंतुष्ट विधायकों को भारत दर्शन के
नाम पर रिझाने हेतू प्रयास भी किए, लेकिन बाजी चौ. भजन लाल ने
मारी। 28 जून 1979 को चौ. भजन लाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर
विराजमान हो गए। वक्त की नजाकत को भली-भांति भांपने में माहिर
चौ. भजन लाल ने जनवरी 1980 में हुए लोकसभा चुनावों मे कांग्रेस
के केंद्र पर काबिज होने पर प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी
से हाथ मिलाते हुए दलबल सहित कांग्रेस में शामिल हो गए। प्रदेश
में जनता पार्टी के मुख्यमंत्री के स्थान पर चौ. भजनलाल
कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री के रूप में जाने गए। यानि
पुरानी बोतल पर नई बोतल का लेबल।
19 मई 1982 को प्रदेश में पांचवीं बार विधानसभा के चुनाव हुए।
पूर्ण बहुमत न होते हुए भी प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल
महामहिम जीडी तपासे द्वारा सबसे बडे़ राजनीतिक दल के नेता के
रूप में चौ. भजनलाल को मुख्यमंत्री की शपथ दिलवा दी गई। राजनीति
के खिलाड़ी के रूप में विख्यात चौ. भजनलाल ने तय समय सीमा के
भीतर ही अपना बहुमत सिद्घ कर सबको अचम्भित कर दिया। विपक्षी
नेता चौ. देवीलाल ने इसका घोर विरोध किया। उन्होंने अपना विरोध
बरकरार रखा और जननायक के रूप में प्रसिद्घ चौ. देवीलाल द्वारा
चलाए न्याय युद्घ के साथ समस्त हरियाणा जुड़ता चलता गया। हालातों
को भांपते हुए कांग्रेस हाईकमान ने 5 जून 1986 को चौ. भजनलाल
के स्थान पर चौ. बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनाकर माहौल बदलने की
चेष्टा की, लेकिन कामयाबी प्राप्त नहीं हुई। चौ. देवीलाल के
न्याय युद्घ की आंधी को रोक पाना कठिन ही नहीं असंभव-सा लगता
था। इसका प्रमाण 5 जून,1986 को हुए विधानसभा चुनावों में
स्पष्ट देखा गया, जिसमें 78 सीटों पर लोकदल व उनकी सहयोगी
पार्टियां भाजपा, सीपीआई, सीपीएम का कब्जा था। 20 जून 1987 को
चौ. देवीलाल की ताजपोशी बड़ी धूमधाम व उल्लास पूर्ण माहौल में
हुई। चौ. देवीलाल के सफल नेतृत्व में प्रदेश प्रगति की ओर
अग्रसर हुआ। 'लोकराज-लोकलाज से चलता है' का नारा देने वाले चौ.
देवीलाल प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ देश की राजनीति में भी
सक्रिय होने लगे। नवंबर 1989 के लोकसभा चुनावों में महवपूर्ण
भूमिका निभाने वाले चौ. देवीलाल ने 2 दिसंबर 1989 को
उपप्रधानमंत्री पद संभाला तथा हरियाणा की राजनीति व मुख्यमंत्री
पद का दायित्व अपने सुपुत्र चौ. ओमप्रकाश चौटाला को सौंप दिया।
चौ. ओमप्रकाश चौटाला उस समय विधानसभा के सदस्य नहीं थे। उनका 6
माह के भीतर विधायक बनना अनिवार्य था। चौ. देवीलाल द्वारा महम
विधानसभा से त्यागपत्र देने पर खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुए,
लेकिन इस उपचुनाव में हुई हिंसक घटनाओं ने हरियाणा सरकार सहित
देवीलाल परिवार की साख को ठेस पहुंचाई। मात्र 5 माह 22 दिन बाद
श्री ओमप्रकाश चौटाला ने त्यागपत्र दे दिया और उपमुख्यमंत्री
श्री बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। मात्र 1
माह 19 दिन पश्चात श्री बनारसी दास गुप्ता से त्याग पत्र दिलवा,
पुनः चौ. ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन राजनीतिक
परिस्थितियों के वशीभूत होकर मात्र 6 दिन पश्चात ही
उपमुख्यमंत्री मा. हुकुम सिंह को मुख्यमंत्री पद पर बैठाना पड़ा।
शिक्षक से मुख्यमंत्री बने मा. हुकुम सिंह द्वारा रिमोट खिलौना
की भांति कार्य करने में आनाकानी करने पर उन्हें मुख्यमंत्री
पद से हटाकर एक बार फिर चौ. ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री पद पर
विराजमान हो गए। कुछ ही दिन पश्चात राज्यपाल से विधानसभा को
भंग करने की सिफारिश भी कर दी। तत्कालीन राज्यपाल महामहिम
धनिकलाल मंडल ने अपने विवेक से 6 अप्रैल 1991 को राष्ट्रपति
शासन लागू कर दिया। इस प्रकार चौ. ओमप्रकाश चौटाला मात्र 15
दिन ही मुख्यमंत्री रहे। अब तक चौ. ओमप्रकाश चौटाला तीन बार
मुख्यमंत्री बन चुके थे, लेकिन उनका कुल कार्यकाल मात्र 6 माह
12 दिन ही रहा। उनका बार-बार मुख्यमंत्री बनना और हटना पूरे
देश में चर्चा का विषय रहा।
विपक्ष ने इस घटनाक्रम को चौ. ओमप्रकाश की पद लोलुपता व
राजनीतिक अपरिपक्वता के रूप में पेश किया। जिसके फलस्वरूप 10
मई 1991 को हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बहुमत से विजयी
हुई और राजनीति के पी.एच.डी. माने जाने वाले चौ. भजनलाल ने
मुख्यमंत्री पद संभाला। केंद्रीय सरकार को भरपूर सहयोग प्राप्त
प्रदेश सरकार ने चौ. भजनलाल के नेतृत्व में प्रदेश में अनेक
उल्लेखनीय कार्य किए। विकास कार्यों के स्मूथ चलने के बावजूद
कंञग्रेस का जनाधार घटने लगा और चौ. बंसीलाल के नेतृत्व वाली
हरियाणा विकास पार्टी के वोट बैंक का विकास होने लगा। विधानसभा
का कार्यकाल पूर्ण होने पर दिनांक 27 अप्रैल 1996 को विधानसभा
के आम चुनाव हुए। जिसमें हविपा-भाजपा गठबंधन को 44 सीटें
प्राप्त हुई। कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त कर चौ.
बंसीलाल एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हो गए। नशा
मुक्ति कानून लागू होने पर शराब माफिया ने अपना जाल पूरे
प्रदेश में फैसला दिया, जिससे प्रदेश सरकार सहित पुलिस प्रशासन
को शक की निगाह से देखा जाने लगा। शराब माफिया के बेकाबू होने
का ठिकरा दोनों सााधारी पार्टियां(हविपा-भाजपा) एक-दूसरे पर
फोडऩे लगी, क्योंकि आबकारी विभाग का मंत्रालय भाजपा विधायक के
पास था। चौ. बंसीलाल को तानाशाही व अडि़यल स्वभाव के कारण भाजपा
विधायकों का स्वाभिमान आड़े आने लगा। जिसके चलते भाजपा ने
बंसीलाल सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया, लेकिन अल्पमत में
हुई बंसीलाल सरकार को कांग्रेस ने समर्थन दे बचा लिया, लेकिन
कुछ ही दिन पश्चात कांग्रेस ने भी बंसीलाल सरकार को मंझधार में
छोड़ दिया। इसी दौरान हविपा के कुछ विधायकों ने नया दल बना,
चौ. ओमप्रकाश चौटाला को अपना समर्थन दे दिया तथा भाजपा ने भी
चौटाला में अपनी आस्था जता दी। 24 जुलाई 1999 को चौ. ओमप्रकाश
चौटाला मुख्यमंत्री बने, लेकिन लगभग 6 माह के भीतर ही विधानसभा
भंग कर चुनाव करवाने की सिफारिश राज्यपाल महोदय को कर दी। 22
फरवरी 2000 को हुए विधानसभा के आम चुनावों में चौ. ओमप्रकाश
चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नैशनल लोकदल को 47 व सहयोगी
भाजपा को 6 सीटें प्राप्त हुई। इस प्रकार चौ. ओमप्रकाश चौटाला
लगातार मुख्यमंत्री पद आसीन रहे। इस दौरान चौटाला नेतृत्व में
प्रदेश में खूब विकास कार्य हुए। छोटे व सीमित मंत्रीमंडल व
दोनों पुत्रों के सहयोग से प्रदेश की अफसरशाही पर जबरदस्त पकड़
बनाते हुए अपना कार्यकाल पूरा किया, लेकिन प्रदेश में गुंडा
तत्वों का प्रभाव बढ़ने से प्रदेश की जनता में भय व्याप्त
रहा,जिसका खामियाजा 3 फरवरी 2005 को हुए विधानसभा चुनावों में
इनेलो को भुगतना पड़ा।
इस चुनाव में कांग्रेस 67 सीटें प्राप्त करने के बावजूद
मुख्यमंत्री का फैसला नहीं कर पा रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री
चौ. भजनलाल व तत्कालीन सांसद श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा में
मुख्यमंत्री पद को लेकर युद्घ छिड़ गया। अंत में फैसला न होता
देख विधायकों ने मुख्यमंत्री पद नामक गेंद को कांग्रेस आलाकमान
के पाले में सरका दी। कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी
ने अपने विवेक से सांसद श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को
मुख्यमंत्री पद संभालने की जिम्मेदारी सौंपी। 5 मार्च 2005 को
श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश की कमान संभाली।
मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में प्रदेश
नंबर वन बनने की ओर अग्रसर है। श्री हुड्डा समाज के सभी वर्गों
को साथ लेकर चलने कामयाब होते नजर आ रहे हैं। जिसका स्पष्ट
उदाहरण हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखकर लगाया
जा सकता है।
लालों के लाल
हरियाणवी लोग उसी
सपूत की कद्र करते है,जो जनता के बीच रहकर संघर्ष करता है। पिता
के द्वारा पकाई गई फसल का आनंद केवल सत्ता के दौरान ही उठाया
जा सकता है। अगली फसल उगाने के लिए स्वयं मेहनत करनी ही पड़ती
है, इस बात से हरियाणा में सत्ता का सुख भोग चुके राजनेताओं के
सपूत भली-भांति परीचित हैं।
प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पण्डित भगवत दयाल शर्मा की भान्ति
शान्त स्वभावी उनके सुपुत्र श्री राजेश शर्मा प्रदेश विधानसभा
के दो बार सदस्य चुने गए व चेयरमैन पद पर भी विराजमान रहे।
हरियाणवी संस्कृति के प्रबल पक्षधर व प्रदेश के दूसरे
मुख्यमंत्री राव विरेंद्र सिंह के सुपुत्र राव इन्द्रजीत सिंह
अपने पिता की भान्ति ही सशक्त नेतृत्व की क्षमता रखते हैं। राव
विरेंद्र सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के पश्चात
महेन्द्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से चार बार सांसद भी रहे। राव
विरेन्द्र सिंह के राजनीतिक उाराधिकारी उनके सुपुत्र राव
इन्द्रजीत सिंह भी महेन्द्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से दो बार सांसद
चुने गए तथा डा. मनमोहन सिंह के प्रथम प्रधानमंत्री काल में
रक्षा मंत्रालय जैसे महवपूर्ण मंत्रालय के राज्यमंत्री बनकर
सराहनीय कार्य किए। वर्तमान में नए परीसिमन के अनुसार गुडगांव
लोकसभा क्षेत्र से एक बार फिर कांग्रेस पार्टी से सांसद चुने
गए।
मार्च 2005 मुख्यमंत्री पद के सक्षम एवं प्रबल दावेदार चौधरी
भजनलाल को राजगद्दी न मिलने से क्षुब्ध उनके छोटे सुपुत्र चौधरी
कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस हाईकमान के विरुद्ध विरोध का बिगुल
बजा दिया। हालांकि चौधरी भजनलाल के बड़े सुपुत्र श्री
चंद्रमोहन बिश्नोई प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बनकर सत्ता की मलाई
का स्वाद चखते रहे। कांग्रेस द्वारा श्री चंद्रमोहन बिश्नोई को
प्रदेश का उपमुख्यमंत्री पद देना चौधरी भजनलाल को शांत करने का
एक प्रयास था, लेकिन भजनलाल परिवार उपमुख्यमंत्री की कुर्सी से
संतुष्ट नहीं हो पाया। श्री भजनलाल के आशीर्वाद से श्री कुलदीप
बिश्नोई ने कांग्रेस को अलविदा कहते हुए 2 दिसंबर 2007 को
मुख्यमंत्री चौं. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गृह क्षेत्र रोहतक
में जनहित रैली कर खुद को होनहार राजनेता के रूप में स्थापित
किया। जनहित रैली में उमड़े जनसमूह ने सभी राजनीतिक दलों के
होश फाख्ता करने का काम किया। बिश्नोई की अगुवाई में बनी
हरियाणा जनहित कांग्रेस (भजनलाल) में अनेक पूर्व मंत्री, पूर्व
विधायकों ने आस्था जताई। ''कुलदीप चले चौपाल की ओर'' के
कार्यक्रम के तहत श्री कुलदीप बिश्नोई ने लोगों के दिलों में
जगह बनाने का प्रयास किया है लेकिन हजकां कार्यकर्ताओं के आपसी
कलह पर पार्टी सुप्रीमों नकेल कसने में नाकाम साबित हुए, जिसके
चलते मई 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में श्री कुलदीप बिश्नोई
का जादू नहीं चल पाया, हरियाणा की दस सीटों में से मात्र हिसार
लोकसभा सीट से ही चौ. भजन लाल चुनाव जीत सके। हरियाणा की जनता
ने चौ. भजन लाल की जीत को हजकां पार्टी की जीत न मानते हुए चौ.
भजनलाल की व्यक्तिगत छवी को जीत का कारण माना।
चौ. देवीलाल के राजनीतिक वारिश चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने छह वर्ष
से अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए विधायकों सहित
प्रशासनिक अधिकारियों पर मजबूत पकड़ बनाते हुए प्रदेश को तरक्की
की राह पर आगे बढ़ाया। वहीं चौ. ओमप्रकाश चौटाला के दोनों
सुपुत्र श्री अजय सिंह चौटाला और श्री अभय सिंह चौटाला ने उनका
भरपूर सहयोग दिया। दादा-पिता के अनुभवों व मार्गदर्शन से दोनों
भाइयों ने हरियाणा की जनता के साथ संपर्क बनाए रखा। पिछले दिनों
श्री अजय सिंह चौटाला द्वारा 14 जनवरी, 2009 को महेंद्रगढ़ के
गांव मलिकपुर से पंचकुला तक तय की गई जनआक्रञेश यात्रा ने उन्हें
एक संर्घषशील एवं सफल नेता के रूप में स्थापित किया। इस
पदयात्रा का पूरे हरियाणा में भरपूर स्वागत हुआ। जनआक्रञेश रैली
ने जिस ओर भी रुख किया वहीं गांव-शहर इनेलो कार्यकर्ताओं के
बैनरों व हरी झडि़यों से सरोबार हो गया। श्री अजय चौटाला अपने
दादा-पिता की भांति जननेता के रूप में स्थापित हुए। वहीं श्री
अभय सिंह चौटाला की प्रदेश में बात के धनी के रूप में पहचान बनी
हुई है।
चौ. बंसीलाल के राजनीतिक उत्तराधिकारी श्री सुरेंद्र सिंह ने
अपने पिता के मार्गदर्शन में व्यापक जनाधार बनाया। दुर्भाग्यवश
उनका निधन हो गया और इस पश्चात उनकी धर्मपत्नी श्रीमती किरण
चौधरी ने स्वर्गीय श्री सुरेंद्र सिंह का सपना पूरा करने के
लिए तोशाम से उपचुनाव जीता। श्रीमती किरण चौधरी ने हरियाणा में
मंत्री पद संभाला और पति की भांति जनता की सेवा की। राजनीति के
शीर्ष पदों की शौभा बढ़ा चुकी श्रीमती किरण चौधरी ने काग्रेंस
अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गान्धी से अपने घनिष्ठ संबन्धों के
चलते अपनी सुपुत्री श्रुति चौधरी के लिए भिवानी-महेंन्द्रगढ़
लोकसभा क्षेत्र के लिए कांग्रेस की टिकट प्राप्त की व हरियाणा
प्रदेश के अत्यन्त प्रभावशाली राजनीतिक परिवार के युवराज श्री
अजय चौटाला को परासत कर लोकसभा पहुंचाआ। विरासत में मिले
राजनीतिक अनुभव से श्रुति चौधरी एक तेज-तर्रार युवा नेत्री के
रूप में उभर कर जनता के सामने आई हैं।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को पीछे छोड़ने वाले वर्तमान
मुख्यमंत्री चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र तथा स्वतंत्रता
सेनानी एवं पूर्व मंत्री श्री रणबीर सिंह हुड्डा के पौत्र
सांसद श्री दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी दादा-पिता की भांति
राजनीतिक की परिभाषा को भली-भांति जानते हैं। अपने पिता
मुख्यमंत्री चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आर्शीवाद से सांसद
श्री दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने संसदीय क्षेत्र में विकास
कार्यों की झड़ी लगाकर लोगों की वाहावाही लूटने में कामयाब होने
वाले श्री दीपेन्द्र हुड्डा मई 2009 के लोकसभा चुनावों में
रिकार्ड मतों से विजयी हुए। मृदुभाषी व पढ़े लिखे युवा नेता के
रूप में श्री दीपेंद्र हुड्डा की आज प्रदेश में खास पहचान बना
ली है।