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लडक़े की च्वायस

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            समाज में एक परम्परा रही है कि विवाह योग्य कन्या के लिए वर की तलाश उसके माता-पिता, परिजनों द्वारा की जाती है। लड़की के मां-बाप संभावित वर को देखने के पश्चात्‌ तय करते हैं कि यह युवक उनकी पुत्री के योग्य है या नहीं। योग्य पाने पर लड़की देखने के लिए आमंत्रित किया जाता है। तब लड़का, लडक़ी देख अपनी पंसद-नापसंद का फैसला सुनाता है। विवश भारतीय कन्या अपनी पंसद का जिक्र तक नहीं कर पाती।

शादी से पूर्व लड़के (मजनूं टाईप) गलियों में, लड़कियों के स्कूल-कॉलेजों के बाहर चक्कर लगाते रहते हैं। उन्हें रिझाने के लिए अनेक फार्मूले अपनाते हैं, लेकिन अधिकांश लड़कों को बेइज्जती व समय बर्बादी के अलावा कुछ नहीं मिलता।

लड़कों से पूछा गया कि तुम लडक़ी को रिझाने के लिए क्या करते हो?

जवाब था 'लड़की को महंगे-महंगे उपहार देते हैं, उसके आगे-पीछे घूमते हैं, उसकी हर अदा की तारीफ करते हैं और भी न जाने क्या-क्या करते हैं। यहां तक कि उसके घर के कुत्तों को भी घुमाने लेकर जाते हैं।'

यही सवाल जब लड़कियों से पूछा गया, तो जवाब कुछ इस प्रकार था

'एक बार हल्की स्माइल दे दो, सारे पागल हो जाते हैं।'

यह चुटकला ही नहीं वास्तविकता है। लेकिन जब समय आता है शादी के लिए जीवनसाथी के रूप में लड़की के चयन का, तब लड़कों की पसंद-नापसंद का स्टेटस आसमान छूने लगता है। वे जिन लड़कियों के पीछे मजनूं बन घूमते रहे तथा जिन लड़कियों ने उन्हें घास तक नहीं डाला, उन लड़कियों से कहीं अधिक सुंदर लड़की को भी नापसंद करने में अपनी शान मानते हैं। बेचारी कन्या लज्जा व सामाजिक परंपराओं से विवश हो अपमान का घूंट भरकर रह जाती है। अब जमाना बदल रहा है। लड़कियों को इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। अपनी पसंद-नापसंद के प्रति जागरूक हो अपनी इच्छा से अपने माता-पिता परिजनों को अवगत करवाना चाहिए।

डॉ. शर्मा की विवाह योग्य बेटी रीमा कॉलेज में लेक्चरार के पद पर कार्यरत है। जब डॉक्टर शर्मा अपनी बेटी के लिए वर तलाश रहे थे तब रीमा ने स्पष्ट कर दिया कि वे उसे ही अपना जीवनसाथी बनाएगी, जो उसे पसंद आएगा। अकेले लड़के की पसंद-नापसंद नहीं चलेगी। जहां भी योग्य वर के बारे में पता चलता डॉक्टर शर्मा वहीं जाते, बात आगे बढ़ती लेकिन इस बात पर रुक जाती कि लड़के की भॉंति लड़की भी अपनी पसंद का फैसला करेगी। किसी भी जगह बात न बनती देख डॉक्टर शर्मा परेशान रहने लगे लेकिन रीमा अपने फैसले पर अडिग रही। मिसेज शर्मा ने भगवान पर भरोसा रखने के लिए कहा। आखिर एक दिन पुनः कहीं रिश्ते की बात चली तो डॉ. शर्मा ने पूर्व की भांति अपनी पुत्री के फैसले से वर पक्ष को अवगत कराया तो लड़के के माँ-बाप भड़क उठे, 'कभी ऐसा भी होता है, समाज में। लड़के को, लड़की के माँ-बाप पसंद करते हैं और लड़की को लड़का ........।' हमारे लड़के को लड़कियों की कमी नहीं ......। हमें नहीं चाहिए ऐसी बहु जो अभी से ऐसी बातें करे ............। जो लड़की कुंवारी होते हुए भी अपने माँ-बाप की ना माने, वो शादी के बाद हमारी क्या मानेंगी। डॉ. शर्मा चुपचाप सुनते रहे लेकिन इसी बीच पंकज (लडक़ा) अपने पिता को संबोधित करते हुए बोला, 'डॉ. शर्मा की बेटी ठीक ही कहती है। शादी तो लड़का-लड़की दोनों की ही होनी है। पसंद भी दोनों की ही होनी चाहिए।' लड़का-लड़की के माँ-बाप को एक दूसरे के खानदान, चरित्र के बारे में छानबीन कर हां या ना करनी चाहिए। शेष पसंद-नापसंद लड़का-लड़की पर छोड़नी चाहिए। बेटे की बात सुन लड़के के माँ-बाप को भी अपनी राय बदल रिश्ते के लिए सहमति देने पड़ी।

पापा से इस रिश्ते के दौरान हुई बातचीत की जानकारी प्राप्त कर रीमा बहुत खुश थी और बोली, पापा! उसकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखने वाला युवक ही उसके लिए संसार का सबसे सुंदर युवक है। मेरी तरफ से उन्हें हां कर दीजिए। आज रीमा और पंकज बेहद खुश हैं एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में पाकर।

समाज में लड़कियों की पसंद-नापसंद को नजरअंदाज करने की मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा। भारतीय समाज में पत्नी, पति को ही देवता मानती है। यदि किसी लड़की को उसकी पसंद का पति न मिले तो वह कुंठित मन से अपना दांपत्य जीवन व्यतीत करती है। ऐसे माहौल में संभावनाएं कम ही होती है कि पति को देवता का दर्जा मिले। बेमेल व नापसंद की छत के नीचे दांपत्य जीवन सुखद नहीं होता, विवाहोत्तर अनैतिक संबंधों की संभावनाएं बढ़ती हैं।

 

 


 

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