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      शादी खर्च

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           बिजली बोर्ड में कनिष्ठ अभियन्ता के पद पर कार्यरत विनोद कुमार अपनी डॉक्टर बेटी की शादी के लिए खरीददारी में व्यस्त थे और बढ़ती महंगाई और जेब में बैलेंस बनाते हुए एक साड़ी वाली दुकान पर अपनी पत्नी के साथ पहुँच गए। वहाँ वे बेटी के लिए शादी के दिन पहनने वाले लहंगे को पसंद कर रहे थे, लहंगों के दाम आसमान को छूने वाले थे। अभी मोलभाव चल रहा था कि उनका परिचित सरदार आलोख सिंह जोकि जंमीदार हैं,भी अपनी बेटी की शादी के् लिए साड़ी-सूट खरीदने पहुँच गए। आपस में राम-राम, सत्‌ श्री अकाल होने के बाद शादी की चर्चा हुई। सीमित आय साधनों वाले सरकारी अफसर विनोद कुमार ने बढ़ती महंगाई का रोना रोया , वहीं आलोख सिंह ने भी हां में हां भरी। यकायक विनोद के मुँह से निकल गया कि लड़की की शादी करनी बहुत महंगी पड़ती है, बड़ा मुश्किल है इतना खर्च करना।

इस पर सरदार आलोख सिंह हल्का मुस्कराए और कहने लगे, विनोद जी, आप तो पढ़े लिखे हैं, बड़े अधिकारी हैं, फिर भी ऐसी बात करते हैं। लड़की की शादी पर तो कुछ भी खर्च नहीं होता, खर्च तो लड़के की शादी पर होता है। उसकी बात सुन विनोद कुमार सहित दुकानदार व अन्य अवाक रह गए। विनोद कुमार बोले- यह आप कैसे कह सकते हैं? तब उन्होंने कहा- मेरे पास 22 एकड़ जमीन है। लड़की की शादी पर ज्यादा से ज्यादा 20 एकड़ जमीन की कीमत के बराबर खर्च करूंगा। शेष 2 एकड़ तो लड़के को ही देने हैं, और शादी के बाद लड़की को तीज त्यौहार पर पूरी जिंदगी में एक या डेढ़ एकड़ जमीन से अधिक कीमत के उपहार नहीं दिए जाते। बेटियाँ तो बहुत सस्ते में विदा होती हैं।

सरदार आलोख सिंह की बात से विनोद कुमार अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने फैसला लिया कि वे खुले मन से बेटी की शादी पर खर्च करेंगे तथा अपनी जायदाद का तीसरा भाग (क्योकि उनके पास 2 बेटे व एक बेटी है) बेटी को अवश्य देंगे। शादी तो लड़का और लड़की दोनों की एक-दूसरे के साथ होती है। फिर लड़की की शादी पर खर्च की बात क्यों? लड़की वाले बारात आने पर उनकी खातिरदारी करते हैं, उन्हें बढि़या-बढि़या खाना खिलाते हैं और अपनी बेटी को विदा करते हैं। शादी के पूर्व या बाद में लड़के वाले अपने सगे संबधियों -मित्रों को प्रीतिभोज/पार्टी देते हैं। यानि दोनों पक्ष मेहमानों के लिए भोजन वगैरा की व्यवस्था करते हैं। आजकल नए चलन के अनुसार लड़के वालों के यहां ही लड़की वाले शादी करने पहुँचते हैं, वहां लड़के वाले अपनी सुविधा अनुसार दोनों पक्षों के मेहमानों के लिए मैरिज पार्टी की व्यवस्था करते हैं। मोटे तौर पर गौर करें तो दहेज छोड़कर शेष खर्च वर-वधू पक्ष का पार्टियां करने में लगभग बराबर ही होता है, लेकिन यह बात क्या इसलिए होती है क्योकि लड़के की शादी में बनवाए गए कपड़े गहने इत्यादि लड़के वालों के घर में ही रह जाते हैं। जबकि लड़की के लिए बनवाए गए कपडे़-गहने लड़की वालों के घर नहीं रह पाते, अपितु बेटी के साथ ससुराल चले जाते हैं।

हमें अपनी सोच बदलनी होगी। बेटी की शादी के खर्च को बोझ न समझें। अपने बेटे व बेटी की शादी में अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च नहीं करना चाहिए, जहाँ तक हो सके फिजूल खर्च नहीं करना चाहिए। यदि बेटे की शादी आप धूमधाम से करना चाहते हैं, तो बेटी की शादी में यह चाहत कम न करें। बेटी को बोझ नहीं बेटे के समान समझें। यदि बेटी व उसकी शादी को बोझ समझेंगे तो आपकी लाड़ली बेटी आपकी परेशानी/बोझ का कारण अपने भावी ससुराल पक्ष को मान अपने दिल में गलतफहमी पाल लेती है, जो बाद में गृह क्लेश का कारण बनते हैं तथा आपकी परेशानी के लिए स्वयं को भी दोषी मान लेती है और सोचती है काश! मैं भी अपने भैया की तरह लड़का होती, तो मेरे पापा मेरी शादी में दुःखी (परेशान) न होकर खुश होते। इस तरह के विचार लिए बेटी ससुराल विदा होती है, और माँ बनने की इच्छा में प्रभु से प्रार्थना करती है कि मुझे बेटी न जन्मियो।




 

 


 

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