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     अबला नहीं अव्वल

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             साधारणतयः यह समझा जाता है कि पुरुष, महिलाओं से शक्तिशाली हैं, लेकिन यह बहुत बड़ा भ्रम है। अब तो वायोलोजिस्टस जीवन वैज्ञानिक भी इस बात पर सहमत है कि स्त्री ही ज्यादा शक्तिशाली है। यह केवल पुरुष का अहंकार है, सदियों से चली आ रही गलतफहमी में जी रहा है पुरुष।

यदि लड़कियाँ, लड़कों से कमजोर हैं, तो सरकार ने शादी के लिए लड़कों की उम्र 21 वर्ष और लड़कियों की उम्र 18 वर्ष क्यों तय की है? शादी के बाद शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए शारीरिक श्रम करना पड़ता है। प्रथम शारीरिक संबंधों के दौरान लड़की को कौमार्य झिल्ली भंग होने पर कष्ट सहना पड़ता है, जबकि पुरुष आनंद का भागी होता है तथा यौन संबंधों के पश्चात पुरुष का केवल वीर्य स्खलन होने पर वह शांत महसूस करता है। जबकि स्त्री को गर्भ धारण की संभवानाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। गर्भ काल व प्रसवकाल की पीड़ा का आभास तो मात्र माताएँ ही कर सकती हैं। प्रसव पीड़ा का असहनीय दर्द को कमजोर सहन नहीं कर सकता।

यदि पुरुष, स्त्री से शक्तिशाली होता तो शादी के लिए स्त्री की उम्र 21 वर्ष और पुरुष की उम्र 18 वर्ष तय होती। प्रसव पीड़ा को सहर्ष सहन कर अपनी औलाद के भोजन का इंतजाम वह अपने खून व भावनाओं से निर्मित दूध से करती है। सारा जग जानता है कि शिशु के लिए माँ का दूध ही सर्वश्रेष्ठ आहार है। इतना सबकुछ एक कमजोर नहीं कर सकता।

एक वैज्ञानिक अध्यन के अनुसार शारीरिक, मानसिक, बौधिक और भावनात्मक रूप से लड़कों और लड़कियों में पाँच वर्ष का फासला होता है। लड़कियाँ अपने हमउम्र लड़कों से पाँच वर्ष पूर्व परिपक्व हो जाती हैं। व्यावहारिक जीवन में भी देखा जाता है कि छोटी उम्र में ही लड़कियाँ अधिक व्यावहारिक हो जाती हैं। पांच -सात वर्ष की लड़की अपने पिता-भाई के मनोभाव को समझ जाती हैं। पन्द्रह-वीस वर्ष के लड़के नहीं समझ पाते। समाज में यह धारणा बनी हुई है कि शादी के समय लड़की से लड़कों की उम्र अधिक होनी चाहिए इसलिए अट्ठारह वर्ष की लड़की से विवाह करने के लिए इक्कीस वर्ष के लड़कों को ही कानूनी मान्यता प्राप्त है।

नारी के पास एक ओर शक्ति है, सहनशीलता। इसी सहनशीलता के कारण पुरुष प्रधान समाज की ज्यादतियों को बर्दाश्त करती है, पुरुष उनकी सहनशीलता को नारी की कमजोरी मानने लगता है, जहाँ से मर्दों की शक्ति समाप्त होती है, नारी की शक्ति वहाँ से शुरू होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर नामक दैत्य का खौफ पूरे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ था। महिषासुर ने अपनी अभय शक्ति से सभी देवताओं को परास्त कर इन्द्रलोक पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। तीनों लोकों में उसके भय, आतंक का साम्राज्य था। ऋषि मुनियों सहित सभी देवता अपनी जान बचाने हेतु इधर-उधर भागते फिर रहे थे। अन्त में सभी देवताओं ने माँ भवानी से प्रार्थना की, हे माता! आप दुष्ट महिषासुर से हमारी रक्षा करें। माँ भवानी ने महाशक्ति का रूप धर महिषासुर दैत्य का वध कर तीनों लोकों में आतंक का साम्राज्य समाप्त कर सुख शांति स्थापित की।
 
पुरुष अपनी सामाजिक, राजनीतिक, व्यापारिक सफतला पर खूब इठलाता है, लेकिन इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का हाथ होता है। जब एक नारी अपने महत्वपूर्ण योगदान से पुरुष को सफलता के चरम तक पहुँचा सकती है, तो उस महिला की योग्यता को कैसे झुठलाया जा सकता है।

लगभग एक दशक से लगातार परीक्षा परिणामों में लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ा हैं तथा राजनीति में भी इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, प्रतिभा पाटिल, माया देवी, जयललिता, ममता बैनर्जी सरीखी कई राजनेत्रियों ने कई मर्द राजनेताओं को धूल चटाई है। इतना ही नहीं 1857 में देश की आजादी का विगुल बजाने वाली मातृशक्ति महारानी लक्ष्मी बाई ही थीं, जिन्हें समाज ने मर्दानी भी कहा।

एक इंसान ताकतवर कैसे माना जाता है? उसमें यदि शारीरिक ताकत हो या पैसे की ताकत हो, या विद्या बुद्धि का बल हो। आदिकाल से इन शक्तियों पर, इन ताकतों पर महिलाओं (देवियों) का राज रहा है। शक्ति का रूप माँ भवानी, पैसा धन संपदा की देवी माँ लक्ष्मी और विद्या बुद्धि की अधिष्ठस्नत्री माँ सरस्वती हैं। फिर किस ताकत शौर्य के दम पर पुरुष अपने आप को ताकतवर मानता है। पुरुषों को धैर्य और संयम से इस पर विचार करना चाहिए। सच कहूं तो धैर्य और संयम भी स्त्रियों में ही होता है, पुरुष स्वभाव से आक्रमक व उतावले होते हैं।
             
 

 


 

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