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     साला शाब्दिक तौर पर गाली क्यों?

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              देवता किसे कहते हैं? देवता कौन होते हैं? जो किसी को कुछ देता है उसे देवता कहते हैं। और देवता वे लोग होते हैं, जो मांगने पर अवश्य देते हैं, धन संपदा, शक्तियों से संपन्न होते हैं। लेने वाले कौन होते हैं? तथा मांगने वाले को क्या कहते हैं? लेने वाला दया का पात्र होता है तथा मांगने वाले को भिखारी कहा जाता है। लेने वाले से देने वाला सदैव श्रेष्ठ होता है।

एक बाप अपनी बेटी की शादी पर वर पक्ष को अपने सामर्थ्य अनुसार ढेरों उपहार दहेज के रूप मे प्रदान करता है तथा फेरों के समय अपने जिगर के टूकड़े (बेटी) को भी वर को दान कर देता है। शादी के समय केवल और केवल लड़की वाले देते हैं और लड़के वाले लेते हैं। फिर देवता कौन और दया का पात्र या भिखारी कौन? दया का पात्र या भिखारी असहाय शब्द है, जिन्हें मैं वापिस लेता हूं। श्री लक्ष्मी जी व श्री कुबेर जी दोनों धनधान्य से संपन्न है फिर भी श्री लक्ष्मी जी की ही पूजा क्यों होती है कुबेर जी की क्यों नहीं। क्योंकि श्री लक्ष्मी जी मांगने पर धन बैभव प्रदान करती हैं, जबकि कुबेर जी के भंडारे धरे के धरे रह जाते हैं। पूजनीय दोनों है, लेकिन श्री लक्ष्मी जी अधिक आराध्य हैं। यानि देने वालों को सर्वत्र सम्मान मिलता है।

लेकिन वर पक्ष व वधू पक्ष में उल्टा होता है। एक बेटी का बाप अपनी लक्ष्मी जैसी बेटी को किसी दूसरे के घर की लक्ष्मी बनाता है तथा लक्ष्मी (धनादि उपहार) भी भेंट करता है और वर पक्ष उक्त लक्ष्मी को स्वीकार कर कुबेर की भान्ति भंडार में भर लेते हैं। फिर भी वर पक्ष वधु पक्ष के लिए उच्च स्थान प्राप्त सम्माननीय होता है। एक दूसरे का मान-सम्मान करना अच्छी बात है। लेकिन लड़की वाले ही क्यों करें लड़के वालों का सम्मान। लड़के वाले क्यो नहीं देते बराबर में लड़की वालों को सम्मान। इस विषय में कुछ लोगों का कहना है कि बेटी घर की इज्जत होती है। जब हम अपनी इज्जत किसी को सौंपते हैं तो उस व्यक्ति की इज्जत करना बेटी के परिजनों का फर्ज बनता है। बेटी वाले लड़की वालों की इज्जत इसलिए भी करते हैं क्योंकि उनके परिवार की एक सदस्या वर पक्ष के परिवार का हिस्सा बन पूरी जिंदगी उनके साथ रहती है। उसके खान-पान, रहन-सहन, सुख-सुविधा की व्यवस्था उन्हें ही करनी है तथा पूरी जिंदगी दुख में उन्होंने ही साथ देना होता है। इसके अलावा यदि उनकी बेटी द्वारा कोई गलती हो जाए हो तो वर पक्ष उसे नजरअंदाज कर दें।

एक-दूसरे का मान-सम्मान करना भारतीय संस्कृति की पहचान है। लेकिन किसी व्यक्ति को केवल इस वजह से दोयम मानना कि उसका संबंध वधु पक्ष से है, उचित नहीं। प्रत्येक परिवार में बहुएँ किसी दूसरे परिवार से ही आती हैं। जो एक दिन बहु से माँ, दादी, नानी, चाची, मामी बनती है। जब समाज उस बेटी का जोकि एक परिवार में बहु बनकर आती और फिर माँ, दादी, नानी, चाची, मामी बनकर मान-सम्मान पाती है तो उस बेटी के परिजन क्यों तिरस्कृत होते हैं। भारतीय समाज में दामाद-जीजा व उनके परिजनों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। समाज उनका आदर सत्कार करता है सामाजिक मान्यता अनुसार उच्च स्थान प्राप्त रिश्तेदार भले ही वो उम्र में आपसे छोटे हों तो भी आपको उनका आदर सत्कार करना होता है। जैसे यदि कोई  व्यक्ति रिश्ते में आपका चाचा, मामा या फूफा लगता है लेकिन उसकी उम्र आपसे छोटी है तो भी आप उसका सम्मान करते हैं और करना भी चाहिए। इसी प्रकार दामाद, जीजा के रिश्ते को भी सम्माननीय दर्जा प्राप्त है, लेकिन रिश्ते की गरिमा बनाए रखने के लिए उन्हें भी अपने ससुराल जनों का सम्मान करना चाहिए। जीजा-साला, ससुर-दामाद का एक महत्वपूर्ण रिश्ता होता है लेकिन इस रिश्ते में जीजा-दामाद को तो सम्मान के साथ बोला जाता है। जबकि साला-साली, ससुर-ससुरी शब्द को गाली-गलौच के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। कोई व्यक्ति जीजा तभी बनता है जब उसके साला-साली होंगे तथा दामाद भी तभी कहलाएगा यदि उसके सास-ससुर जिंदा होंगे। दोनों रिश्ते एक दूसरे के पूरक होने के बावजूद साला शाब्दिक गाली क्यों?

 

 


 

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