Set as Homepage | Add to favorites



 

    जोरू का गुलाम

.
 

 
            भारत में नारी की स्थिति विरोधाभास पूर्ण रही है। परम्परा से नारी को शांति का रूप
 माना गया है लेकिन समाज में उसे अबला का स्थान ही प्राप्त है। स्त्रियां अपने पति को देवता मान उनका सम्मान करती हैं उनके हर जुल्म को हंसकर सह लेती हैं। पति 'देव' उनकी इस प्रवृति का खूब फायदा उठाते हैं। अपनी जरा-सी भी इच्छापूर्ति न होने पर गाली-गलौच करना उनके लिए आम बात है तथा कई तो लात-घूसों का प्रयोग करने में भी संकोच नहीं करते। इतना सब कुछ होने के पश्चात भी समाज में एक सुगफ्फा बहुत पुराना है कि बड़े से बड़ा फन्नेखां बलशाली व्यक्ति भले ही किसी से न डरे, लेकिन अपनी बीवी से जरुर डरता है। तथाकथित मर्दों की दरिंदगी को देखते हुए ऐसा नहीं लगता, फिर भी यह पूर्ण सच है कि हर व्यक्ति अपनी पत्नी से जरुर डरता है, कोई कम, तो कई ज्यादा। अहिंसा व सहनशीलता के बल पर हर किसी को हराया जा सकता है।
 
विनय एक गुस्सैल व पहलवान किस्म का व्यक्ति है तथा कभी-कभी शराब का सेवन भी करता था। एक रात शराब के नशे में उसका अपनी बीवी कमला से झगड़ा हो गया। विनय ने गुस्से व नशे में अपनी गर्भवती बीवी को थप्पड़ जड़ दिया और गुस्से में उसे कमरे के एक किनारे खड़े रहने की सजा सुनाई और नशे की हालत में झगड़ते हुए सो गया। करीब आधी रात बीत जाने पर जब उसका नशा कम हुआ और आंख खुली तो उसने पाया कि उसकी बीवी कमला उसी प्रकार दीवार के सहारे खड़ी है। उसने देखा कि गर्भावस्था के कारण कमला के पांव सूज गए हैं, तभी उसे याद आया कि उस बेचारी को उसने ही गुस्से में खड़े रहने की सजा सुनाई थी। तभी उसने फौरन उठकर अपनी बीवी को गले लगाया और बैड पर लिटाया। ता-उम्र शराब न पीने और इस प्रकार की दुष्टतापूर्ण हरकत न करने की कसम खाई। उस दिन से विनय का स्वभाव एकदम बदल गया तथा वह अपनी पत्नी कमला की हर बात मानने लगा। बीवी की बेहद इज्जत करने वाले विनय को भले ही उसके दोस्त जोरू का गुलाम कहकर चिढ़ाने का प्रयास करें, लेकिन विनय प्रेम की प्रतिमूर्ति कमला की सहनशीलता व त्याग के समक्ष नतमस्तक है।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने अहिंसा की शタति को पहचानते हुए,अहिंसा को ही अपना हथियार बना अंगे्रजों से लोहा लिया। अहिंसा की शांति के आगे वे अंग्रेज भी पराजित हुए, जिनके साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं हुआ। महात्मा गाँधी जी को संभवतयः अहिंसा व सहनशीलता की शांत का आभास नारी से ही हुआ होगा। तभी तो उन्होंने कस्तूरबा जी को अपना प्रेरणा स्त्रोत बताया है।

मैंने एक दिन अपने मित्र डॉ. जितेंद्र चौधरी से अचानक पूछा क्या आप अपनी बीवी से डरते हैं, तो वे इस अटपटे व अचानक पूछे गए सवाल पर अवाक से रह गए। उनके लिए यह प्रश्न कुछ इस प्रकार का था जैसे मैंने उनसे पूछ लिया हो कि タया आपकी पत्नी आपको अब भी पीटती है। उन्हें इस प्रकार अवाक्‌ अवस्था से उबारने हेतु मैंने अपने प्रश्न पूछने के पीछे मात्र उनकी अपनी पत्नी के प्रति भावनाएं जानना बताया, तो वह कुछ सहज होकर बोले, इसका जवाब हां भी है और ना भी। उन्होंने अपने इस जवाब का खुलासा कुछ इस प्रकार किया, कोई ऐसा कार्य जिसे मेरी स्नेहिल, सहनशील बीवी पसंद नहीं करती और मुझे स्नेहपाश में बांध उक्त कार्य न करने का वायदा ले लेती है या न करने की अपील करती है या मुझ पर विश्वास कर ऐसा मान लेती है कि मैं उक्त कार्य नहीं करूँगा। लेकिन यदि वहीं कार्य मैं करता हूँ या मैं मजबूरीवश करता हूँ, तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारती है। मुझे ऐसा लगता है, मैं अपनी बीवी से विश्वासघात कर रहा हूँ तो मुझे उसका सामना करने से अज्ञात भय-सा लगता है।

और उन्होंने 'ना' का कारण बताते हुए कहा कि मैं अपनी बीवी से डरता नहीं, उसकी इज्जत करता हूँ। यदि मुझे वह किसी ऐसे कार्य को न करने के लिए जोर देती है, जिस काम को करना मेरा दायित्व है या ऐसा कार्य करने पर बल देती है जिसे मेरा दिलो-दिमाग करने पर सहमत नहीं होता, तो मैं उसके कहने पर कभी नहीं करता भले ही वह मुझे उक्त कार्य करने के लिए कितना ही दबाव क्यों न दें। लेकिन कई बार स्त्री हठ के चलते उनकी बात न चाहते हुए भी माननी पड़ती है।

नारी प्राकृतिक रूप से ही अहिंसक, स्नेहशील, सहनशील, संयमी होती है। अपने इन्हीं प्राकृतिक गुणों के् कारण पुरुष को अपने स्नेहपाश में बांध लेती है। नारी को अपने प्राकृतिक गुणों को बनाएं रखते हुए अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा। नारी को भावनाओं में बहकर अपने व अपने परिवार के अधिकारों का त्याग नहीं करना चाहिए।
             
 

 


 

Copyright © 2008-15 Haryana21.com All rights reserved.