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यह लेख उस नारी का चित्रण करता है जो एक बेटी
भी है और पत्नी भी है। एक भारतीय नारी जब बड़े अरमान लेकर अपने
बाबुल के घर से डोली पर सवार होकर अपने प्रियतम के घर जाती है।
दुलार देने वाले मां-बाप को छोड़कर बेइंतहा प्यार करने वाले पति के
साथ जीवन गुजारती है, लेकिन मामुली गृह क्लेश में मायके वालों की
दखलअंदाजी से बात का बतंगड़ बन जाता है और जीवन नरक। मायके वालों व
पति के बीच तनाव इस कदर बढ़ जाता है कि दोनों एक दूसरे को देखना तक
पसंद नहीं करते। बेचारी नारी दोनों पक्षों के बीच सुलह करवाने का
भरसक प्रयास करती रहती है लेकिन दोनों पक्ष अहंकारवश अपनी बात पर
अड़े रहते हैं। उक्त नारी के प्यार में लबालब होने का दावा करने
वाले दोनों पक्ष झुकने को तैयार नहीं होते। पति व मायके के बीच हुए
तनाव के लिए खुद को दोषी मान तनावग्रस्त रहने लगती है।
मेरठ स्थित एक सरकारी कंपनी में हेड क्लर्क के पद पर कार्यरत ट्रैड
यूनियन नेता राम बिहारी बाबू की बेटी शीला की शादी एक मल्टीनेशनल
कंपनी के सेल्स अधिकारी विवेक के साथ हुई। शीला-विवेक खुशी-खुशी
अपना दांपत्य जीवन गुजार रहे थे। जहां दो बर्तन होंगे, खड़केंगे
जरुर। मियां-बीबी में किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई। इसके दो-तीन
दिन बाद विवेक का कंपनी की ओर से मेरठ का टूर आ गया। तो विवेक ने
सोचा शीला को मनाने का बेहतर तरीका है कि इसे अपने साथ मेरठ ले जाऊँ।
शीला अपने माँ-बाप से मिलेगी तो खुश हो जाएगी और मैं कंपनी का काम
भी कर लूँगा। शीला मायके जाने के नाम पर पति के साथ मेरठ जाने को
राजी हो गई। लेकिन मायके जाते ही गुस्से से भरी शीला ने विवेक के
साथ हुई तकरार को अपने माँ-बाप को बता दिया तथा पूर्व में हुई कुछ
इसी प्रकार की तकरारों को भी बता दिया। बेटी को दुःखी देख राम
बिहारी बाबू दुःख व गुस्से से भर गए। शीला की माँ ने राम बिहारी व
शीला को शांत किया। शाम को जब विवेक कंपनी का काम समाप्त कर अपनी
ससुराल पहुंचा तो उसे ससुराल वालों के रूखे व्यवहार पर आश्चर्य हुआ
लेकिन उसने इसे नजरअंदाज कर दिया और पत्नी को लेकर वापस अपने घर आ
गया। जल्दी ही तकरार भूल शीला-विवेक पहले की तरह सामान्य रहने लगे।
दस-बारह दिन बाद स्वभाव से उतावले, कानून बाज राम बिहारी बाबू का
रजिस्ट्रड पत्र विवेक के पिता को मिला। पत्र बेहद सख्त व अपमानजनक
भाषा में लिखा हुआ था। शीला के पिता ने अपने पत्र में विवेक सहित
उसके माता पिता व परिवार के अन्य सदस्यों को दोषी ठहराते हुए अंजाम
भुगतने की धमकी दी थी। पत्र प्राप्त होते ही घर में कोहराम सा मच
गया। विवेक के माता-पिता सहित किसी को भी विवेक व शीला की आपसी
कहासुनी का पता तक नहीं था। जब इस पत्र बारे शीला को पता चला तो
उसने भी अपने पिता द्वारा सख्त व अपमानजनक भाषा में लिखित
रजिस्ट्रड पत्र पर शर्मींदगी महसूस की। शीला ने अपने मायके में फोन
कर ऐसे पत्र न लिखने बारे कहा। विवेक ने अपने ससुर को कहा, 'बाबूजी
आपको इस तरह का पत्र नहीं लिखना चाहिए था, यह आपकी बेटी-दामाद का
घरेलू मामला है, न कि आपके कार्यालय या यूनियन का मामला। इस प्रकार
की सख्त व धमकी पूर्ण बातें लिखकर रजिस्ट्रड डाक द्वारा कानूनी
कार्रवाई दफ्तरों में की जाती है न की घरों में। बड़े होने के नाते
आप को समझाना चाहिए था।' दामाद के मुख से इस प्रकार की सख्त बात
सुन गुस्सैल राम बिहारी बाबू ने विवेक को सबक सिखाने की ठान ली।
योजना के अनुरूप शीला के मायके वाले शीला की गृहस्थी में दखल अंदाजी
करने लगे। उनकी इस दखल अंदाजी से विवेक-शीला का प्यार तो कम नहीं
हुआ लेकिन विवेक की ससुराल वालों से दूरियां बढ़ती चली गई। विवेक व
शीला के मायके वालों के बीच शीत युद्ध छिड़ गया। यह युद्ध इस हद तक
बढ़ गया कि विवेक ने ससुराल वालों से लगभग नाता तोड़ लिया और शीला
के मायके वाले हर हाल में तलाक करवाने पर अमादा थे। इस दौरान कई
बार रिश्तेदारों ने समझौता करवाने का प्रयास भी किया। समझौता
क्षणिक होता, शीला के मायके वालों व विवेक का अहंकार समझौते को लंबे
समय तक न चलने देता था। मौका मिलते ही शीला के मायके वाले विवेक को
अपमानित करते तो विवेक अपना विवेक खो देता था। जिसके चलते घर की
शांति को ग्रहण सा लग गया और शीला को उसको मायके वाले विवेक के
खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने व तलाक लेने हेतु उकसाने लगे, लेकिन
समझदार व संयमी शीला ने ऐसा कुछ न किया जिससे घर उजड़ जाए। शीला पति
और पिता-भाई की अहंकार की लड़ाई के बीच पिसती रहती।
शीला जैसी महिलाओं की स्थिति चक्की के दो पाटों के बीच पिसने वाले
अनाज की भांति है। चक्की के दोनों पाटों का कुछ नहीं बिगड़ता,
बिगड़ता है तो केवल अनाज का। शीला जब अपने मायके वालों को समझाने
का प्रयास करती तो उसे छोटी बच्ची की भांति फटकार दिया जाता और जब
शीला अपने पति को मनाने का प्रयास करती तो मायके वालों की तरफदारी
का आरोप सुन चुप कर जाती। शीला की भावना, उसका दुःख कोई नहीं समझता।
न उसका पति, न उसका मायका। अपना होने का दम भरने वालों की भीड़ में
भय, क्रोधी व हीन भावना से ग्रस्त हो अकेली जिंदा लाश की भांति जी
रही हैं शीला जैसी नारियां!
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