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वेश्यावृति का आधार 'भूख'
है। कोई पेट की भूख मिटाने के लिए इस धंधे में आती है, तो कोई पेट
के नीचे की भूख मिटाने के लिए इनके संपर्क में आते हैं। विश्व का
सबसे पुराना व्यापार देह व्यापार है। ज्ञात इतिहास केञ् अनुसार
भारत के मंदिरों की देवदासियां संभवतयाः पहली वेश्याएं थी, इसी
प्रकार कोस्थि में एफ्रोडाइट के मंदिर तथा आर्मीनिया में एनाइतिस
के मंदिर की हायरोड्यूल (मंदिर में रहने वाली दासियां) भी इसी काल
की वेश्याएं थी, जो धन के बदले देह परोस पुरुष की काम तृप्ति करती,
मिलने वाले धन को मंदिर के कोष में जमा करवा देती थी। यह देव दासियां,
मंदिर में पुजारिओं सहित नगरसेठों आदि की कामतृप्ति करती थी। धर्म
के नाम पर चलने वाला काम वासना का यह खेल मंदिरों से निकल नगर में
वेश्यावृति के रूप में फैलने लगा।
देवदासी प्रथा भारत के दक्षिणी पश्चिम हिस्से में सदियों से चले आ
रहे धार्मिक उन्माद की उपज है। जिन बालिकाओं को देवी-देवता को
समर्पित किया जाता है, वह देवदासी कहलाती हैं। देवदासी का विवाह
देवी-देवता से हुआ माना जाता है, वह किसी अन्य व्यक्ति से विवाह नहीं
कर सकती। सभी पुरुषों में देवी-देवता का अक्श मान उसकी इच्छा पूर्ति
करती हैं।
यह कुप्रथा भारत में आज भी महाराष्ट्र और कर्नाटक के कोल्हापुर,
शोलापुर, सांगली, उस्मानाबाद, बेलगाम, बीजापुर, गुलबर्ग आदि में
बेरोकटोक जारी है। कर्नाटक के बेलगाम जिले के सौदती स्थित येल्लमा
देवी के मंदिर में हर वर्ष माघ पुर्णिमा जिसे 'रण्डी पूर्णिमा' भी
कहते है, के दिन किशोरियों को देवदासियां बनाया जाता है। उस दिन
लाखों की संख्या में भक्तजन पहुँच कर आदिवासी लड़कियों के शरीर के
साथ सरेआम छेड़छाड़ करते हैं। शराब के नशे में धूत हो अपनी काम
पिपास बुझाते हैं।
नारी देह, पुरुष के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रही है। समुंद्र
मन्थन के दौरान अमृत कलश दैत्यों के हाथ लग गया, तब दैत्यों से
अमृत कलश वापिस लेने के लिए सुंदर नारी का रूप धरे भगवान विष्णु के
यौवन पर मुग्ध हो असूरों ने अमृत कलश उन्हें सौंप दिया। महाभारत
काल के दौरान तो वेश्याओं का वर्गीकरण भी किया गया जैसे राज वेश्या,
नगर वेश्या, गुप्त वेश्या (सफेदपोश, कालगर्ल की भांति) देव वेश्या
(देववासी) ब्रह्मा वेश्या (तीर्थ स्थान पर रहने वाली) आदि। प्राचीन
काल से ही नारी यौवन पुरुषों केञ् बीच युद्ध का विषय बना रहा है।
इस प्रकार के युद्ध को विराम देने के लिए एक निर्णय लिया गया कि
जिस यौवना के कारण युद्ध छिड़ा हो उसे नगरवधु की उपाधि देकर
सामुहिक भोग की वस्तु बना दिया जाए। आम्रपाली इसी कारण नगरवधु बनने
को मजबूर हुई। नगरवधु की एक रात्रि की कीमत अत्याधिक होने के कारण
नगर के चंद साहूकार ही उसका रसपान कर पाते थे। लेकिन सम्राट अशोक
के काल की प्रख्यात नगरवधु आम्रपाली से चुनिदां किशोरियों को
परीक्षण दिलवाया जाता था और चौसठ कलाओं में पारंगत होने पर उन्हें
पेशे में उतार दिया जाता था। उनकी देह की कीमत नगरवधु से कम आंकी
जाती थी। उन दिनों वेश्याएं समाज की सम्मानित नागरिक होती थी। इन्हें
जनपद कल्याणी भी कहा जाता था। ये वेश्याएं केवल मनोरंजन ही नहीं
करती थी, अपितू राजा की सलाहकार, सहचरी व गुप्तचर भी होती थी।
मदनमाला, चित्रलेखा (चंद्रगुप्त मौर्य की सहचरी), चंद्रसेना (अशोक
की सहचरी), देवरक्ता (हर्षवर्धन की सहचरी) के अतिरिक्त वसन्तसेवा,
महानंदा, पिंगला आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं।
मुगल बादशाह के जमाने में लगभग दस लाख परिवार कोठा संस्कृति के पेशे
से ही बसर करते थे, देश में इनकी बाढ़ का प्रमुख कारण सिकंदरs की
सेना द्वारा स्त्रियों के साथ मनमानी करना था। इनकी तुलना
पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा शोषित बांग्लादेश की उन सोनार युवतियों
से कर सकते हैं, उनमें से अधिकांश महिलाएं अब कलकता व मुंबई के कोठों
पर दम तोड़ रही है। मुगल साम्राज्य के अन्तिम बादशाह ओरंगजेब ने
गद्दीशीन होते ही अपने किले सहित सभी वजीरों, नवाबों के हरम खाली
करवा दिए। हरम से निकाली गई युवतियों को बाहरी दुनियां के बारे में
ज्यादा ज्ञान नहीं होता था। हरम में तो वे अपने सरनाम मालिक के
अलावा किसी अन्य पुरुष का चेहरा तक भी नहीं देख पाती थी, क्योंकि
हरम के पहरेदार भी ख्वाजा (हिजड़े) होते थे। हरम से निकली युवतियां
यहां-वहां कोठों पर बैठ धंधा करने लगी।
अंग्रेजों ने भी राजा महाराजाओं को ऐय्याश बनाए रखने के लिए
वेश्याओं की सेवाओं का भरपूर प्रयोग कर अपना उल्लू सीधा किया। इतना
ही नहीं अंग्रेजों ने अपने सैनिकों व कर्मचारियों के लिए कुछ विशेष
कोठे सुरक्षित भी कर लिए थे।
1947 में देश आजाद हुआ। देश का बटवांरा, राजनीतिक उठापटक,
भ्रष्टस्नचार, नाकाम न्याय व्यवस्था, मंहगाई, बेरोजगारी ने इतनी
बहू-बेटियों को वेश्या बना डाला, जितनी पहले कभी नहीं बनीं। चूल्हे
की आग जलाने हेतू गरीब युवतियां सफेदपोश पैसे वाले 'इज्जतदार' लोगों
के जिस्म की आग को शांत कर मजबूरन गुप्त वेश्याएं बन गई।
स्वतंत्र भारत के संविधान के अनुसार वेश्यावृति पर कानूनन प्रतिबंध
है, लेकिन इसका कोई असर देखने को नहीं मिलता। ताजा स्थिति यह हो गयी
है कि कई शहरों में तो कोठों के बाजारों के अलावा अनेक बस्तियां भी
है, जहां घर-घर में देह व्यापार पुलिस के कथित सरंक्षण में होता
है।
जबरन वेश्यावृति के धन्धे में धकेली गई युवतियों की स्थिति बद् से
बद्तर होती है। जिन्हें अपने पेट की भूख मिटाने केञ् लिए एक रात
में बीस-बीस, तीस-तीस 'मर्दों' को शरीर बेचना पड़ता है। फिर भी उसको
भरपेट अच्छा भोजन नसीब नहीं होता। यह सब हमारे भारत देश में ही
संभव है।
रिपोर्टों के अध्ययन से निष्कर्य निकलता है कि अधिकांश वेश्यावृति
में धकेली गई युवतियां भूख की मारी हुई हैं। बेसहारा, बलात्कार की
शिकार व अपहृताएं होती है। जिन्हें एक-एक कमरे में जानवरों की तरह
रखा जाता है। इन बेदम, लाचार, निर्जीव सी नारियों को नारी कहना
विचित्र सा लगता है। क्या शेष है उनमें जिसे एक सामाजिक बोध के साथ
नारी कहा जाए? भयंकर आर्थिक शोषण और उत्पीड़न के इन मूर्त रूपों को
देखकर अपने समाज के विरुद्ध मन आक्रोश से भर जाता है।
वेश्याओं की दूसरी श्रेणी में वे वेश्याएं आती है जो अपनी वर्तमान
आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए वेश्यावृति करती हैं।
मध्यवर्गीय परिवार से संबधित ये महिलाएं दलालों के माध्यम से ही
धंधा करती हैं। इनका कार्यक्षेत्र आसपास की रिहायशी कालोनियों तक
ही सीमित होता है। कुछ महिलाएं अति महत्वाकांक्षी प्रवृति की होती
हैं। इसमें वह कामकाजी महिलाएं शामिल हैं जो शार्टकट से तरक्की पाने
को वेताब रहती हैं। वे बॉस को अपने रूप-यौवन के जाल में फांसकर
योग्य कर्मचारियों को पछाड़ तरक्की पाने में सफल हो जाती हैं।
उन्नति पाने के लिए किसी भी हद को पार करने पर राजी हो जाती हैं।
ऐसी महिलाओं को वेश्या कहना वेश्याओं का अपमान करना है।
वेश्याओं का वर्ग ऐसा भी है, जिनके पास अच्छे वस्त्र, प्रसाधन की
सुविधा है, स्थान है और अपनी एक विशिष्ट समाजिक पहचान भी है। गायन,
वादन, सौंदर्य के आकर्षण में बांध ग्राहक को सम्मोहित करती है।
वर्तमान समय में देह व्यापार भी हाईटैक हो गया है। इन्टरनेट,
मोबाइल पर वेश्याएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। दोस्ती के नाम पर
राष्ट्रीय समाचार पत्रों में छपे विज्ञापन वास्तव में देह व्यापार
की ओर इशारा करते हैं। नादान व कामुक प्रवृति की कॉलेज छात्राएं
आधुनिकता के नाम पर इस धन्धे से संलिप्त हो जाती है। शुरूआती दौर
में ये अपने पुरुष मित्रों से शारिरीक मित्रता होने पर उपहार लेती
हैं, लेकिन पुरुष मित्रों की संख्या बढ़ने के साथ-2 उपहार, नकद राशि
में तब्दील हो जाता है। ऐसी किशोरावस्था वेश्याओं का अन्त बहुत बुरा
होता है। छोटे-छोटे ढ़ाबों से लेकर फाइव स्टार होटलों में
कालगर्ल्स का जाल फैला हुआ है जो दलालों के माध्यम से बड़ी आसानी
से उपल्बध हो जाती हैं।
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