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                नारी श्रद्धेय है.......

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           नारी एक अगरबत्ती की तरह है जो अपना सर्वस्व हवन कर सम्पूर्ण जगत्‌ को सुगन्धित करती है और अन्त में भस्मीभूत होकर राख में परिणत हो जाती है।

नारी सत्य, प्रेम और विश्र्वास का रूप है। उसमें श्रद्धा, भक्ति और त्याग का जीवित चित्रण है। कला चेतना उसमें विद्यमान है। लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती भी नारी केञ् प्रतीक रूप हैं।

नारी माता है, पत्नी है, पुत्री है, बहन है, भाभी है, प्रेमिका है, साथी है, सहयोगी है। नारी एक ऐसा फूल है जो छाया में भी सुगन्ध फैलाता है। पति के लिए त्याग, सन्तान के लिए ममता, दुनिया के लिए दया, जीव-मात्र के लिए करुणा संजोने वाली नारी ही तो है। नारी समाज का एक अभिन्न अंग ही नहीं अपितू नारी से ही समाज है। नारी के बिना भारतीय समाज ही नहीं बल्कि सारी सृष्टि ही अधूरी प्रतीत होती है।

भारतीय नारियों में त्याग, सेवाभाव, सहिष्णुता एवं निष्ठा के गुण विद्यमान हैं। नारी प्राचीन काल से ही अपनी अदभुत शक्ति प्रतिभा, चातुर्य, स्नेहशीलता, धैर्य, समझ, सौन्दर्य के कारण हर मोर्चे पर पुरुष से आगे रही है। जहां वह पति को पूज्य व देव तुल्य मानती है, वहाँ पति भी उसे गृहलक्ष्मी कहकर किसी देवी से कम नहीं समझता।

यद् गृहे रमते नारी लक्ष्मीस्तद गृहवासिनी।
देवता कोटिशो वत्स न त्यज्यंति गृहहितत॥

अर्थात्‌ जिस घर में सदगुण सम्पन्न नारी सुखपूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। हे वत्स ! करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।

नर-नारी दोनों गृहस्थी रूपीी गाड़ी के दो पहिए हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। स्त्री के बिना तो किसी घर की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इसीलिए कहा गया है-

'बिन घरनी घर भूत समाना।'

पुरुष के लिए नारी प्रेरणा का एक स्त्रोत है। प्रेरणा का सूक्ष्म प्रभाव होता है। कुछ कहना-सुनना नहीं पड़ता। केवल उसकी उपस्थिति ही सब चमत्कार कर देती है।

नारी में त्याग एवं उदारता है, इसलिए वह देवी है। परिवार के लिए तपस्या करती है इसलिए वह तापसी है। उसमें ममता है इसलिए माँ है। क्षमता है, इसलिए शक्ति है। किसी को किसी प्रकार की कमी नहीं होने देती, सबके लिए भोजनादि की व्यवस्था करती है, इसलिए अन्नपूर्णा है।

नारी महान है। वह एक शक्ति है। भारतीय समाज में वह देवी है। नारी की कोमलता, सुन्दरता और मोहकता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। इसी शक्ति के बल पर वह बड़े-से-बड़े वीर, महान, विद्वान्‌ और कलाकार को पैदा करती है। बिना अपने आप को विज्ञापित किए, वह एक साथ कई मोर्चो की कमान संभालती है। सन्तान उत्पत्ति से लेकर पुत्र पालन तक, प्रेम से लेकर विवाहित जीवन तक वह निरन्तर प्रेरणा की मशाल बनी रहती है।

नारी का प्रेम सृजनात्मक है तथा उसकी प्रसन्नता फूल खिलाती है। नारी सृष्टि सर्जक है। वह पोषक है और संकट-काल में साक्षात्‌ काली बनकर संहार करने में समर्थ है। नारी पहले अनुगामिनी होती है , फिर सहभागिनी होती है और अन्त में अग्रगामिनी हो जाती है। जीवन केञ् प्रत्येक क्षेत्र में उसकी महवपूर्ण स्थिति और उपयोगिता है। वह पुरुष की तुलना में परिश्रम प्रेम, सहानुभूति, सेवा और जीवन के अन्यान्य क्षेत्रों में उससे सदैव आगे रही है और रहेगी।

नारी उदात्त भावनाओं का मूर्त रूप है, त्याग की प्रतिमूर्ति है, प्रेम और श्रेय की परिधि से परे योग और भोग, अध्याय और दर्शन, दैव और जैव-धरातल पर सकाम और निष्काम उपलब्धियों की पूर्वपीठिका है।

माता होने पर ब्रह्मास्नंड में लाने, पत्नी के रूप में पुरुष के सुख-दुःख में भागीदार होने वाली, बहन के रूप में माता का वात्सल्य देकर पीछे मज़बूती से खड़ी रहने वाली, पुत्री बनकर घर में उजाला फैलाने वाली स्त्री का दर्जा समाज में, परिवार में ऊँचा है।

नारी केवल नर का मादा रूप मात्र नहीं है। नारी तो एक शाश्र्वत, चिरन्तन दिव्य रूप है। जिसकी अनुभूति मात्र हो सकती है, अभिव्यक्ति नहीं। और वह अनुभूति हर उस व्यक्ति को होती है जो एक पुत्र है, पति, पिता या भाई है, इसकी अनुभूति प्रत्येक उस व्यक्ति को होती है जो आत्मीयता के धरातल पर आदमी है या हर उस जीव को होती है जो जैव धरातल पर चैतन्य है,क्योंकि नारी रूप की पूर्णता मातृरूप में होती है।

नारी के गुणों को देखते हुए गहराई से मनन किया जाए तो साक्षात्‌ देवी रूप एवं ईश्र्वरीय रूप सामने आता है। नारियों पर अत्याचार करते हुए अत्याचारी पुरुष यदि एक बार भी नारी गुणों का अध्ययन कर लेता है तो वह अत्याचार नहीं कर सकता, ऐसा मेरा विश्र्वास है।

सारी सृष्टि को विद्या का ज्ञान देने वाली तथा मनुष्य की मेधा व बुद्धिबल की प्रतीक और नर-नारी के शरीरों के संघर्ष से जो अग्नि पैदा होती है उसी के तेज, उसी की ज्योति, देवी माँ सरस्वती भारतीय नारी की चरम उपलब्धि है। धन का भण्डार लुटाने वाली, श्री सौभाग्य, धन-धान्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माँ लक्ष्मी है जिसकी कामना सारी दुनिया में छोटे से लेकर बड़े तक बड़े चाव से करते हैं।

केरल के तिरुवल्ले क्षेत्र में चक्कुलाथालु काबू देवी मन्दिर में मलयालम के धानु माह के प्रथम शुक्रवार को प्रति वर्ष नारी की पूजा की जाती है। इस दिवस पर हजारों नारियां एकत्र होती हैं। मन्दिर का पुज़ारी महिलाओं को आसन पर बैठाकर उनके पांव धोता है, नए वस्त्र वितरित करता है, तत्पश्चात्‌ पुरुष वर्ग पुजारी के साथ मंत्रोच्चारण करते हुए उपस्थित महिलाओं की विधिवत पूजा करते हैं।

इस नारी पूजा को देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटक हज़ारों की संख्या में उपस्थित होते हैं। मन्दिर के रजि़स्टर में दर्ज एक फ़्रांस की महिला पर्यटक जेन लोपाल ने अपनी टिप्पणी में लिखा है, ''महिलाओं का ऐसा सम्मान होना, भारत में ही सम्भव है। एक विकसित राष्ट्र की गर्वित नागरिक के रूपमें मैं विकासशील भारत के प्रति कुछ-कुछ तिरस्कार की भावना से यहाँ आई थी, किन्तु अब एक विकसित राष्ट्र से अपनी विकासशील मातृभूमि वापस जा रही हूँ।''

नवरात्रों में खासकर अष्टमी/नौवीं को तो घर-घर में कन्याओं की पूजा होती है। अविवाहित लड़कियों के पैर धोए जाने की प्रथा है। कन्याओं के पैरों को धोकर उनको खाना आदि खिलाया जाता है।

पुरुष के लिए नारी एक ईश्र्वरीय उपहार है , जिसे स्वर्ग खो जाने की क्षतिपूर्तिस्वरूप ईश्वर द्वारा प्रदान किया गया है। नारी ही प्रजा-सृष्टि है। वह शिशु के रूप में ईश्र्वर को भी जन्म देती है। वह महासेतू है जिस पर अदृश्य जगत्‌ से चलकर नए मनुष्य दृश्य जगत में आते हैं। सृष्टि के आदि से विश्र्व उसकी गोद में क्रीडा करता आया है। नारी सृष्टि की परम सौन्दर्यमयी सर्वोत्कृष्ट कृति है। सौंदर्य से अभिमानी, उत्तम गुणों से उसकी प्रशंसा होती है और लज्जा से वह देवी है। उसकी मधुर मुस्कान में महानिर्माण के स्वप्न हैं।

प्रकृति की तरह नारी भी निर्मात्री और संचालिका है। अपने स्त्री-गुणों के साथ कल्याणी है। वह अपने परिवार व संसार का कल्याण करने वाली है। जीवन को निरंतरता देने का माध्यम माँ है। स्त्री को सरस्वती समान गुणी, लक्ष्मी समान कुशल गृहलक्ष्मी होने केञ् साथ शक्ति भी माना गया है। अतः नारी को देवी के रूप में दुर्गा, लक्ष्मी, ज्वाला, गौरी, भगवती आदि नामों से पूजा जाता है।

नारी जीवन की वह धुरी है , जहाँ से जीवन संचालित होता है। पिता के न रहने से सन्तान गऱीब हो सकती है पर माता उनका पालन-पोषण ठीक-ठाक कर देती है। माता के बिना गऱीब न होने पर भी वह दुःखी हो जाती है। बच्चों का माता के बिना मन, मस्तिष्क और जीवन का सन्तुलन ही बिगड़ जाता है। बच्चों का भविष्य, आने वाले समाज का भविष्य, नारी पर निर्भर है। भारतीय संस्कारों में नारी को पुरुष से, माता को पिता से पहले स्थान दिया जाता है, जैसे माता-पिता, स्त्री-पुरुष, राधा-कृष्ण, सीता-राम, लक्ष्मी-नारायण, भवानी-शंकर आदि।

इतिहास में ऐसी महिलाएँ असंख्य हैं जिन्होंने अपने परिवार और बच्चों को बचाने के लिए प्राणों की आहूति दे दी। आज भी कई नारियाँ ऐसी हैं जो अपने परिवार की रात-दिन सेवा में लीन हैं। उन्हें अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रहता। यदि उनका स्वास्थ्य खराब भी चल रहा है तो भी आराम नहीं कर सकतीं। बस उन्हें तो परिवार के एक-एक सदस्य का ध्यान रखना है। उनकी सेवा करनी है। यहां तक यदि उन्हें आराम करने के लिए कहा जाता है, तो कहती हैं कि यदि शरीर है तो इसके साथ कुछ-न-कुछ तो लगा ही रहता है। वे अपने शरीर की परवाह किए बग़ैर दूसरे सदस्यों का ध्यान रखती हैं। ऐसा करने में उन्हें जो आनन्द प्राप्त होता उसकी कोई सीमा नहीं।

नारी की प्रकृति ईश्र्वरीय है , इसमें कोई शक नहीं है। वह पक्षी की तरह आकाश में आज़ादी से उडक़र या घूमकर इतनी खुश नहीं होगी जितनी वह पति, बच्चों और परिवार में बंधकर खुश होती हैं। सारी रात स्वयं गीले बिस्तर पर सोकर और अपने बच्चों को सूखे में सुलाकर उसे सुख मिलता है। वह अपने पति की पसन्द को अपनी पसन्द मानकर आनन्दित होती है।

आज नारियों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, संगठित होना पड़ रहा है, महिला कल्याण आयोग आदि बनाए जा रहे हैं, महिलाओं के कल्याण संबंधी कितनी तरह की संस्थाएँ आगे आ रही हैं। महिला विश्र्व सम्म्लेनों का आयोजन कर दुनिया-भर में संग्राम छेडऩे का अभियान चलाया जा रहा है, आरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। आखिर नारियों को इन सबकी आवश्यकता क्यों पड़ी ?क्या सचमुच इनको अधिकारों से वंचित रखा गया है ? अधिकांश पुस्तकों में, समाचार-पत्रों में महिलाओं की समस्याओं तथा उन पर हो रहे अत्याचारों को दर्शाया जाता है। कहीं-कहीं तो नारियां ही नारियों पर तथा कहीं पर पुरुष वर्ग नारियों पर अत्याचार करते हैं। आखिर क्यों हो रहे हैं अत्याचार श्रद्धेय नारी पर ........?

 

 
     


 

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