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गर्भ में शिशु के बढ़ने का क्रम
 

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महान संत कवि सूरदास जी द्वारा अपने अर्न्तमन से भगवान श्री कृष्ण के बालस्वरूप को दर्शनों का वर्णन कर पूरे जगत को भाव विभोर किया है, उसी प्रकार एक माँ अपने गर्भ में पल रहे शिशु की प्रत्येक हरकत पर मन ही मन प्रसन्न होते हुए आशीष देती है। गर्भ में पल रहे शिशु के बढ़ने का क्रम और गतिविधियां उतनी ही रोचक व रोमांचकारी होती है, जितनी एक शिशु की अठखेलियां। जिस प्रकार जन्म के समय शिशु एक लाचार, वेबस मांस का सजीव खिलौना सा प्रतीत होता है लेकिन धीरे-धीरे दिन प्रतिदिन बढ़ते क्रम की ओर होता है, स्तनपान कर माँ की गोद से निकल घुटनों के बल चलता है। फिर धीरे-धीरे दौड़ने लगता है। शिशु की प्रत्येक गतिविधि माँ-बाप सहित पूरे परिवार को आन्नद प्रदान करती है। गर्भ में पल रहे शिशु की माह वार बढ़ने का क्रम कुछ इस प्रकार होता है।
 


प्रथम माहः
-भ्रूण की लंबाई अर्धचंद्र की भांति घुमाव लिए हुए 1/4 इंच होती है।
-हृदय, पाचनतंत्र, स्नायु तंत्र, रीढ़ की हड्डी व स्पाईन कोड बनना शुरू हो जाता है।
-गर्भ नाल का विकास शुरू हो जाता है।
-गर्भ धारण से अब तक शुक्राणु दस हजार गुणा अधिक बढ़ जाते हैं।
 


द्वितीय माहः
-भ्रूण  की लंबाई एक इंच तक बढ़ जाती है।
-दिमाग बनना शुरू हो जाता है।
-दिल कार्य करने लगता है।
-आंख, नाक, मुंह, कान बनना शुरू हो जाते हैं।
-हड्डी व नसें बनना शुरू हो जाती हैं।
-पुल्लिंग भ्रूण का लिंग बनना शुरू हो जाता है।
-भ्रूण हरकत करने लगता है, लेकिन भ्रूण की हरकत को मां महसूस नहीं कर पाती।
 


तृतीय माहः
-भ्रूण की लंबाई ढाई से तीन इंच तक हो जाती है।
-भ्रूण का वजन आधा से एक औंस तक हो जाता है।
-नाखून और भौंएँ बनने लगती हैं तथा दांतों का विकास शुरू हो जाता है।
-बाजू, हाथ, टांगें, पैर पूरी तरह से बन जाती हैं और उनका हरकत में आना भी संभव है।
-आँखें लगभग पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं।
-इस समय तक शिशु के सभी अंग तैयार हो जाते हैं।
-शिशु की दिल की धड़कन एक विशेष यंत्र डोप्पलर से सुनी जा सकती हैं।
 


चतुर्थ माहः
-भ्रूण की लंबाई साढे़ छः से 7 इंच तक लंबी हो जाती है।
-इसका वजन लगभग 6 से 7 औंस तक होता है।
-भ्रूण अपना अंगूठा चूसने लगता है।
-उसकी हथेली व तलवों की ग्रंथियां बनने लगती हैं।
-हाथों और पैरों की अंगुली बन जाती हैं।
-त्वचा का रंग गुलाबी, पारदर्शी होता है व त्वचा हल्के मुलायम बालों से ढकी होती है।
-लिंग पता चल सकता है।
-लेकिन बच्चा मां की कोख से बाहर जीवित नहीं रह सकता।
 


पंचम माहः
-भ्रूण की लंबाई 8 से 10 इंच तक लंबी हो जाती है।
-वजन लगभग 1 पौंड हो जाता है।
-सिर पर बाल उगने शुरू हो जाते हैं।
-गर्भस्थ शिशु की गर्भ में हलचल को मां महसूस करने लगती है।
-शिशु के अंदरूञ्नी अंग व माँसपेशियां तैयार हो जाती हैं।
-आँख, आँखों की पुतलियां व भौंएँ तैयार हो जाती हैं।
 


षष्ठ माहः
-भ्रूण की लंबाई 11 से 14 इंच हो जाती है।
-वजन लगभग पौने दो पौंड से दो पौंड तक हो जाता है।
-कभी-कभी शिशु पलकें भी झपकाता है।
-शिशु की त्वचा सुरक्षा कवच बन जाता है,जिसे वीर्नक्स कहते हैं।
-गर्भस्थ शिशु हिचकियाँ लेने लगता है।
-स्वाद का अनुभव करने वाली ग्रंथियों का विकास होने लगता है।
 


सप्तम माहः
-भ्रूण की लंबाई 14से 16 इंच तक हो जाती है।
-वजन ढ़ाई से साढे़ तीन पौंड तक हो जाता है।
-स्वाद अनुभव करने लगता है।
-त्वचा पर चर्बी की तह बनने लगती है तथा त्वचा का रंग लाल व झुरियाँ-सी प्रतीत होती हैं।
-लगभग सभी अंग विकसित हो जाते हैं।
-यदि इस दौरान शिशु जन्म ले लेता है, तो उसे समय से पहले यानि प्री-मैच्यौर डिलीवरी कहते हैं। इसमें जन्मे बच्चे को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
 


अष्ठम माहः
-गर्भस्थ शिशु की लंबाई साढे 16  से 18 इंच होती है।
-वजन 4 से 6 पौंड होता है।
-इस माह शिशु की तेजी से ग्रोथ होती है।
-इस माह दिमाग का बहुत अधिक विकास होता है।
-शरीर के सभी अंग पूर्ण विकसित हो जाते हैं। फेफेडे. व गुर्दे भी विकसित होते हैं।
-उंगलियों के नाखून बढ़ने लगते हैं।
-बच्चे द्वारा हाथ-पांव चलाने का मां के शरीर के बाहर से ही अनुभव किया जा सकता है।
-त्वचा सामान्य होने लगती है।
 


नवम माहः
-गर्भस्थ शिशु की लंबाई 19 से 20  इंच हो जाती है।
-वजन लगभग सात से साढ़े सात पौंड हो जाता है।
- फेफेडे. पूर्ण विकसित हो जाते हैं।
-शरीर में चर्बी बढ़ने लगती है।
-त्वचा सामान्य व गुलाबी होती है।
-शिशु अब मां केञ् शरीर के बाहर जीने में सक्षम हो जाता है।
-जन्म लेने को आतुर शिशु पैर के निचले भाग की ओर बढ़ जाता है।




 

 


 

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