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संसार में
अनेकों धर्मों का चलन है, सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने तरीके
से अपने ईष्ट देव की अराधना करते हैं। उन्हें अपना भगवान मानते
हैं, अल्लाह मानते हैं। अलग-अलग धर्म के लोग अपने ईष्ट देव को
विभिन्न नामों से पुकारते हैं। राम, रहीम, अल्लाह, गॉड, वाहेगुरू
सभी परमपिता परमात्मा के ही नाम हैं। भगवान को हम किसी भी नाम से
जाने या पुकारें लेकिन हम सब जानते हैं कि परमपिता परमात्मा एक ही
है जो पूरी सृष्टि को चलाता है। सभी धर्म अनुयायी, नतमस्तक हो, अपने
ईष्ट देव की आराधना करते हैं। ठीक उसी प्रकार प्रत्येक सौभाग्यशाली
इंसान अपनी माँ
का सम्मान करता है क्योंकि मातृत्व सदैव स्तुत्य है।
माँ के रूप में ही इंसान परमात्मा के दर्शन करता
है। माँ शब्द भगवान का
र्प्यायवाची शब्द माना गया है। इस संसार में माँ और संतान
का रिश्ता ही सबसे पवित्र और सच्चा माना जाता है। माँ अपना सर्वस्व
न्यौछावर कर अपनी संतान की रक्षा करती है। एक आत्मा, एक बीज को अपने
गर्भ में धारण कर नौं माह तक विकसित कर जन्म देती है तथा उसके
पश्चात अनबोल बच्चे की हर जरूरत को भावनाओं के जरिए जानकर पूरी करती
है। स्वयं कष्ट सह संतान को सुख देती है तब वो माँ कहलाती है। इसी
प्रकार रोगियों के कष्टों को हरने के लिए सेवा कार्य करने वाले
चिकित्सक को भी भगवान के बाद दूसरा स्थान प्राप्त है। स्वयं अपने
स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए रोगियों को स्वस्थ करने में अपना
सौभाग्य मानने वाला चिकित्सक किसी देवता से कम नहीं होता।
एक धर्मगुरू के प्रवचनों में उल्लेखित कथा अनुसार जब सृष्टि रचियता सृष्टि रच रहे थे तब आत्मा ने कहा कि हे प्रभु! आपके बिना मैं धरती पर बिल्कुल अकेला पड़ जाऊंगा, अनाथ हो
जाऊँगा। मुझे बेसहारा का कौन सहारा होगा? मेरी रक्षा कौन करेगा? आपके दर्शन
कैसे करूंगा?
भगवान ने कहा,'हे जीव! पृथ्वी लोक पर तुझे जन्म देने वाली देवी तेरी
माँ, तेरे लिए, मेरे समान ही स्नेह देने वाली तथा तेरी रक्षा करने
वाली होगी। तुझे अपने शरीर के अंदर, गर्भ में विकसित कर तुझे
जन्म देगी और तेरी रक्षा करेगी। हे पुत्र! भय मत कर, माँ की कोख और
गोद तेरे लिए सुरक्षित स्थान होगी। माँ के
रूप में ही तुम मेरे
दर्शन करना।'
जीवात्मा ने पुनः प्रश्न किया, 'हे प्रभु! नश्वर जगत में माँ के आँचल से निकल जब मेरा शरीर बड़ा होगा, जब मुझे शारीरिक कष्ट होंगे,
तब मेरे कष्टों का हरण कौन करेगा।'
प्रभु हंसकर बोले, 'हे जीव! सतकर्म करने वाली एक जीवात्मा चिकित्सक
के रूप में तुम्हारे कष्टों को दूर करेगी।' तब आत्मा प्रभु के वचनों से संतुष्ट होकर पृथ्वी लोक में जन्म लेने के लिए राजी हो
जाती है।
लेकिन कलयुग में माँ और चिकित्सक अपने उच्च स्थान की मर्यादा का
पालन न कर पाए। पुत्रेच्छा की मारी माँ अपनी लाड़ली बेटी की हत्या
के लिए सुपारी देने वाली बन गई और पैसों का लोभी
डॉक्टर हत्यारा
बन बैठा। पूरे ब्रह्मास्नण्ड में प्रथम स्थान माँ को व धरती पर
दूसरा स्थान चिकित्सक को प्राप्त होने के बावजूद, ये दोनों शैतान
का कार्य क्यों कर रहे हैं! शैतान भी अबोध बालक पर दया कर देता है,
लेकिन बेटी के नाम पर घिन्न करने वाली मां और पैसों का लोभी
डॉक्टर
उस अबोध बालिका पर कहर ढाहते हैं जिसने अभी जन्म भी नहीं लिया।
जिसके बदन के अंग भी इतने विकसित नहीं हुए कि वो संसार में
जन्म ले सके।
चिकित्सक भगवान का
रूप होता है। उसके पास चाहे उसका मित्र आए
या उसका दुश्मन, वो इसका इलाज नेक नीति से करता है। लेकिन पैसे के लालच में पड़ कर मासूम अजन्मी बच्ची का भी कत्ल करने पर खुशी-खुशी
राजी हो जाता है। एक नारी के लिए मातृत्व सबसे बड़ी पूर्णता है।
विश्व में एक नेक प्राणी को लाना, उसके नन्हें कार्यों का अवलोकन
करना और उसके उज्जवल भविष्य के स्वप्न देखने का अनुभव सर्वाधिक
आहलादक होता है और एक चिकित्सक के लिए किसी की जान बचाना आलौकिक
उपहार से कम नहीं होता है। तो फिर ये
कुकृत्य क्यों?
एक बहुत पुरानी व लोकप्रिय कथा है एक बार एक युवक अपनी प्रेमिका
के कहने पर अपनी माँ का दिल निकालकर जल्दी-जल्दी अपनी प्रेमिका
को भेंट करने केञ् लिए दौड़ता है। रास्ते में वह ठोकर लगने से गिर
पड़ता है। माँ के दिल से आवाज आती है 'बेटा कहीं चोट तो नहीं लगी'
ऐसी माँ जो मरने के पश्चात् भी अपनी औलाद के लिए तड़पती
हो,उस औलाद के लिए जिसने उसका ही कत्ल किया हो, ठोकर से लगी
मामूली-सी चोट भी बर्दाश्त न कर सकी हो। वो माँ भला
कैसे अपनी ही
कोख में पल रहे शिशु का कत्ल करवा देती है।
प्रत्येक इन्सान अपनी औलाद, माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी सहित सभी
सगे सम्बन्धियों, मित्रों के
उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता है। उन्हें
थोड़ा सा भी शारीरिक कष्ट या बीमार पडऩे पर उसके ईलाज
हेतु डॉक्टर
के पास जाते हैं। ईलाज
हेतु हर सम्भव प्रयास करते हैं तथा
डॉक्टर
भी मरीज की देखभाल में
कोइ कमी नहीं छोड़ता। लेकिन गर्भ में मादा
भ्रूण की जानकारी मिलते ही माँ-बेटी का रिश्ता भी बेमानी हो जाता
है, लाड़ली बिटिया अनचाहा बोझ प्रतीत होने लगती है। स्वयं माँ-बाप
अपने प्रेमांश की हत्या करवाने हेतू रक्षक से भक्षक बने
डॉक्टर के पास पहुँच जाते हैं। तथाकथित माँ-बाप से अजन्मी बच्ची की हत्या की
सुपारी ले हत्यारा
डॉक्टर अनबोल बच्ची का कत्ल कर देता है। अनचाहे
बोझ से निजात पा माँ-बाप खुश हो जाते हैं, वहीं चांदी के
सिक्कों
की झंकार से डॉक्टर भी प्रसन्न हो जाता है। लेकिन मानवता के इस
कत्लेआम पर इन्सानियत
जार-जार रोती है।
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