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      कन्या भ्रूण हत्या पर कानून

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       प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरुपयोग का विनियम व निवारण) अधिनियम, 1944

भ्रूण का लिंग जाँचः-

भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोकथाम के उद्देश्य से प्रसव पूर्व निदान तकनीक के लिए 1994 में एक अधिनियम बनाया। इस अधिनियम के अनुसार भ्रूण हत्या व लिंग अनुपात के बढ़ते ग्राफ को कम करने के लिए कुछ नियम लागू किए हैं, जो कि निम्न अनुसार हैं:

-गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच करना या करवाना।

- शब्दों या इशारों से गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग के बारे में बताना या मालूम करना।

- गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच कराने का विज्ञापन देना।

- गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे बच्चें के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना गैर कानूनी है।

-कोई भी व्यक्ति रजिस्टे्रशन करवाएँ बिना प्रसव पूर्व निदान तकनीक(पी.एन.डी.टी.) अर्थात अल्ट्रासाउंड इत्यादि मशीनों का प्रयोग नहीं कर सकता।

-जाँच केंद्र के मुख्य स्थान पर यह लिखवाना अनिवार्य है कि यहाँ पर भ्रूण के लिंग (सैक्स) की जाँच नहीं की जाती, यह कानूनी अपराध है।

-कोई भी व्यक्ति  अपने घर पर भ्रूण के लिंग की जाँच के लिए किसी भी तकनीक का प्रयोग नहीं करेगा व इसके साथ ही कोई व्यक्ति  लिंग जाँचने के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं करेगा।

- गर्भवती महिला को उसके परिजनों या अन्य द्वारा लिंग जाँचने के लिए प्रेरित करना आदि भू्रण हत्या को बढ़ावा देने वाली अनेक बातें इस एक्ट में शामिल की गई हैं।

-उक्त अधिनियम के तहत पहली बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष की कैद व पचास हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।

- दूसरी बार पकड़े जाने पर पाँच वर्ष कैद  व एक लाख रूपये का जुर्माना हो सकता है।

लिंग जाँच करने वाले क्लीनिक का रजिस्टे्रशन रद कर दिया जाता है।

प्रसवपूर्व निदान तकनीकों का वित्तिनयमन :-

इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत आनुवंशिक सलाह केन्द्रों, आनुवंशिक प्रयोगशालाओं, आनुवंशिक क्लीनिकों और इमेजिंग सैंटरों में जहां गर्भधारणपूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान तकनीक से संचालन की व्यवस्था है, वहां जन्म पूर्व निदान तकनीकों का उपयोग केवल निम्न लिखित विकारों की पहचान के लिए ही किया जा सकता हैः-
1. गणसूत्र संबंधी विकृति
2. आनुवंशिक उपापचय रोग
3. रक्त वर्णिका संबंधी रोग
4. लिंग संबंधी आनुवंशिक रोग
5. जन्म जात विकृतियां
6. केन्द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसूचित अन्य असमानताएँ एवं रोग।

इस अधिनियम के अंतर्गत यह भी व्यवस्था है कि प्रसव पूर्व निदान तकनीक के उपयोग या संचालन के लिए चिकित्सक निम्नलिखित शर्तों को भली प्रकार जांच कर लेवे की गर्भवती महिला के भ्रूण की जाँच की जाने योग्य है अथवा नहीं:

1. गर्भवती स्त्री की उम्र 35 वर्ष से अधिक है।

2. गर्भवती स्त्री के दो या दो से अधिक गर्भपात या गर्भस्त्राव हो चुके हैं।

3. गर्भवती स्त्री नशीली दवा, संक्रमण या रसायनों जैसे सशक्त विकलांगता पदार्थों के संसर्ग में रही है।

4. गर्भवती स्त्री या उसके पति का मानसिक मंदता या संस्तंभता जैसे किसी शारीरिक विकार या अन्य किसी आनुवंशिक रोग का पारिवारिक इतिहास है।

5. केन्द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसुचित कोई अन्य अवस्था है।

पी.एन.डी.टी.एक्टss 1994 के नजर से अपराधी कौनः

-प्रसव पूर्व और प्रसव धारण पूर्व लिंग चयन जिसमें प्रयोग का तरीका, सलाह और कोर्ई भी उपबंध और जिससे यह सुनिश्चित होता हो कि लड़के के जन्म की संभावनाओं को बढ़ावा मिल रहा है, जिसमें आयुर्वैदिक दवाएँ और अन्य वैकल्पिक चिकित्सा और पूर्व गर्भधारण विधियाँ, प्रयोग जैसे कि एरिक्शन विधि का प्रयोग इस चिकित्सा के द्वारा लड़के के जन्म की संभावना का पता लगता है, शामिल हैं।

-अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीन या अन्य तकनीक से गर्भधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, करवाना, सहयोग देना, विज्ञापन करना कानूनी अपराध है।

गर्भपात का कानून
(गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971)


गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल निम्नलिखित स्थितियों में करवा सकती है :

1. जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो ।

2. महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।

3. गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।

4. बच्चा गंभीर रूञ्प से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।

5. महिला या पुरुष द्वारा अपनाया गया कोई भी परिवार नियोजन का साधन असफल रहा हो।

-यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद हो तो गर्भवती स्त्री एक डॉक्टर की सलाह से बारह हफ्तों तक गर्भपात करवा सकती है। बारह हफ्ते से ज्यादा तक बीस हफ्ते (पाँच महीने) से कम गर्भ को गिरवाने के लिए दो डॉक्टर की सलाह लेना जरुरी है। बीस हफ्तों के बाद गर्भपात नहीं करवाया जा सकता है।

- गर्भवती स्त्री से जबर्दस्ती गर्भपात करवाना अपराध है।
- गर्भपात केवल सरकारी अस्पताल या निजी चिकित्सा केंद्र जहां पर फार्म बी लगा हो, में सिर्फ रजिस्ट्रीकृत डॉक्टर  द्वारा ही करवाया जा सकता है।

धारा 313

स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करने के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।

धारा 314
धारा 314 के अंतर्गत बताया गया है कि गर्भपात कारित करने के आशय से किये गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु में दस वर्ष का कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है और यदि इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना किया गया है तो कारावास आजीवन का होगा।

धारा 315
धारा 315 के अंतर्गत बताया गया है कि शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के पश्चात्‌ उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य से सम्बन्धित यदि कोई अपराध होता है, तो इस प्रकार के कार्य करने वाले को दस वर्ष की सजा या जुर्माना दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

 

 
     


 

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