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(मानवाधिकार)
भारत में जिस गति से नारी उत्पीड़न में बढ़ोतरी हुई हैं, वह कानून
व न्याय की कमजोरी व निष्क्रियता का परिणाम है। अपराध को
नियंत्रित करने वाली इकाइयां निष्प्रभावी होने
के कारण अपराधियों
के हौसले बुलंद रहते हैं। पुलिस पर राजनीतिक तबकों का भी प्रभाव
रहता है, जो उन्हें आंखें मूंदने पर मजबूर करता है। समाज में अपराधों
को रोकने का जिम्मा केञ्वल पुलिस विभाग का ही नहीं होता, बल्कि उनका
समाज में एक आचार संहिता
के अंतर्गत व्यवहार करना अपेक्षित माना
जाता है।
समाज में पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी अपराध करती हैं। परिस्थितिवश
या जानबूझकर वे अपराध जगत में कदम रखती हैं और अपराधी बन जाती है।
यद्यपि समाज
के लिए वे अपराधी ही होती है और उन्हें भी मात्र
अपराधी मानकर व्यवहार करना चाहिए।
किन्तु महिला जाति, विशेषकर
महिला अपराधियों व कमजोर तबकों की महिलाओं
के साथ पुलिस का
व्यवहार अमानवीय ही रहता है।
समाज की रक्षक पुलिस आज भक्षक बनती जा रही है। कई बार पुलिस वाले
ही महिलाओं
के साथ छेड़छाड़, अश्लीलता, बलात्कार आदि
के दोषी
पाएं जाएं जाते हैं,
किन्तु विभागीय लाज बचाने की खातिर महिलाओं
की शिकायत दर्ज ही नहीं की जाती।
कई पुलिस थानों में महिला जेल ही नहीं होती और जहां होती भी है वहां
प्रायः महिला पुलिसकर्मी ही नहीं होती, यदि हों तो भी पुलिसिया
व्यवहार से ग्रस्त होकर पीडि़ता को अपमानित करना या उनका शोषण
करवाना उनके स्वैच्छिक कार्यों में शामिल हो जाता है। स्त्री
सुधार गृह, नारी निकेतन, महिला कल्याणार्थ खोली गई
कुछ तथाकथित
स्वयंसेवी संस्थाएं आज नारी शोषण का
केंद्र बन चुकी हैं, चाहे
अपराधी महिला हो,
किन्तु उसका महिला व्यक्तित्व उसे शेष अपराधियों
से पृथक करता है और ऐसे में एक ऐसे पुलिस तंत्र की स्थापना आवश्यक
हो जाती है, जो महिलाओं द्वारा, महिलाओं की और महिलाओं
के लिए ही
हो।
अभद्रता व पुलिसिया व्यवहार से बचाने
के लिए महिलाओं को
कुछ
अधिकार प्रदान किए गए हैं,
कुछ निर्देशों को स्पष्टस्न् किया गया
है, जिनका पुलिस व न्यायतंत्र को सख्ती से पालन करना होता है।
एक वास्तविक परिदृश्
सभी थानों में महिला लॉकअप नहीं होते, इसलिए औरतों को प्रायः
पुरुष लॉकअप में बंद कर दिया जाता है या दिनभर अथवा रातभर थाने
में बैठाकर रखा जाता है। पीडि़त महिला
के साथ अभद्रता की जाती
है, विशेषकर बलात्कार की शिकार महिला
के साथ। महिला सिपाही भी इस
उत्पीड़न में
पुरुष सिपाहियों का साथ देने में सकोंच नहीं करती।
पुलिस वाले महिलाओं का सामाजिक स्तर जाने बिना गाली-गलौच पर उतर आते
हैं। कभी-कभी महिलाओं की गिरफ्तारी
के संबंध में महिला सिपाही का
नाम खानापूर्ति
के लिए लिख दिया जाता है। उत्पीड़न की शिकायत करने
पर महिला को ही चरित्रहीन साबित किया जाता है और उस पर दूसरे पक्ष
से समझौता करने का दबाव डाला जाता है। प्रायः लॉकअप में बंद महिला
कैदी से लॉकअप में ही या
उनके परिवार के सामने ही
क्रूरता, अभद्रता और बलात्कार तक किया जाता है।
क्या कहते हैं कानून और मानवाधिकार
पूछताछ के दौरान अधिकार
-आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-160
के अंतर्गत किसी भी
महिला को पूछताछ
के लिए थाने या अन्य किसी स्थान पर नहीं बुलाया
जाएगा।
-उनके बयान उनके घर पर ही परिवार
के जिम्मेदार सदस्यों
के सामने ही लिए जाएंगे।
- रात को किसी भी महिला को थाने में बुलाकर पूछताछ नहीं करनी चाहिए।
बहुत जरुरी हो तो परिवार
के सदस्यों या 5 पड़ोसियों
के सामने
उनसे पूछताछ की जानी चाहिए।
-पूछताछ के दौरान शिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाए।
गिरफ्तारी के दौरान अधिकार
-महिला अपनी गिरफ्तारी का कारण पूछ सकती है।
-गिरफ्तारी के समय महिला को हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी।
-महिला की गिरफ्तारी महिला पुलिस द्वारा ही होनी चाहिए।
-सी.आर.पी.सी. की धारा-47(2)
के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति
को ऐसे रिहायशी मकान से गिरफ्तार करना हो, जिसकी मालकिन कोई महिला
हो तो पुलिस को उस मकान में घुसने से पहले उस औरत को बाहर आने का
आदेश देना होगा और बाहर आने में उसे हर संभव सहायता दी जाएगी।
-यदि रात में महिला अपराधी
के भागने का खतरा हो तो सुबह तक उसे
उसके घर में ही नजरबंद
करके रखा जाना चाहिए। सूर्यास्त
के बाद किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
-गिरफ्तारी के
24् घंटों
के भीतर महिला को मजिस्टे्रट
के समक्ष पेश करना होगा।
-गिरफ्तारी के समय महिला
के किसी रिश्तेदार या मित्र को
उसके साथ थाने आने दिया जाएगा।
थाने में महिला अधिकार
-गिरफ्तारी के बाद महिला को
केवल महिलाओं
के लिए बने लॉकअप
में ही रखा जाएगा या फिर महिला लॉकअप वाले थाने में भेज दिया जाएगा।
-पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने या दुर्व्यवहार किए जाने पर महिला
द्वारा मजिस्टे्रट
से डॉक्टरी जांच की मांग की जा सकती है।
-सी.आर.पी.सी. की धारा-51
के अनुसार जब कभी किसी स्त्री को गिरफ्तार
किया जाता है और उसे हवालात में बंद करने का मौका आता है तो उसकी
तलाशी किसी अन्य स्त्री द्वारा शिष्टता का पालन करते हुए ली
जाएगी।
तलाशी के दौरान अधिकार
-धारा-47(2)के अनुसार महिला की तलाशी
केवल दूसरी महिला
द्वारा ही शालीन
तरीके से ली जाएगी। यदि महिला चाहे तो तलाशी लेने
वाली महिला पुलिसकर्मी की तलाशी पहले ले सकती है। महिला की तलाशी
के दौरान स्त्री
के सम्मान को बनाए रखा जाएगा। सी.आर.पी.सी. की
धारा-1000 में भी ऐसा ही प्रावधान है।
जांच के दौरान अधिकार
-सी.आर.पी.सी. की धारा-53(2)
के अंतर्गत यदि महिला
की डॉक्टरी
जांच करानी पड़े तो वह जांच
केवल महिला
डॉक्टर द्वारा ही की जाएगी।
-जांच रिपोर्ट
के लिए अस्पताल ले जाते समय या अदालत में पेश करने
के लिए ले जाते समय महिला सिपाही का महिला
के साथ होना
जरुरी
है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराते समय अधिकार
-पुलिस को निर्देश है कि वह किसी भी महिला की एफ.आई.दर्ज करे।
-रिपोर्ट दर्ज कराते समय महिला किसी मित्र या रिश्तेदार को साथ ले
जाए।
-रिपोर्ट को स्वयं पढ़ने या किसी अन्य से पढ़वाने
के बाद ही महिला
उस पर हस्ताक्षर करें।
-उस रिपोर्ट की एक प्रति उस महिला को दी जाए।
-पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने पर महिला
वरिष्ठस्न् पुलिस अधिकारी या स्थानीय मजिस्ट्रेट से मदद की मांग कर
सकती है।
- धारा-437
के अंतर्गत किसी गैर जमानत मामले में साधारणयता
जमानत नहीं ली जाती है, लेकिन महिलाओं
के प्रति नरम
रुख अपनाते
हुए उन्हें इन मामलों में भी जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
-किसी महिला की विवाह
के बाद सात वर्ष
के भीतर संदिग्ध अवस्था
में मृत्यु होने पर धारा-174(3)
के अंतर्गत उसका
पोस्टमार्टम प्राधिकृञ्त सर्जन द्वारा तथा जांच एस.डी.एम. द्वारा
की जानी अनिवार्य है।
-धारा-416
के अंतर्गत गर्भवती महिला को मृत्यु दंड से छूट दी
गई है।
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