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महिला उत्पीड़न की
समस्या से जूझने हेतु एवं महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कानून
बनाए गए हैं। इनके अतिरिक्त कई अंतराष्ट्रीय कनवेन्शन भी इससे
संबंधित है, जो भारत पर भी लागू है। महिलाओं के लिए इन कानूनों की
जानकारी अत्यावश्यक है, क्योंकि यह कानून न केवल न्याय का रास्ता
दिखाते हैं, अपितु महिलाओं को अन्याय एवं उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने
का साहस भी प्रदान करते हैं।
सीडो (कन्वेंशन ऑन द एलीमिनेशन ऑफ ऑल
फार्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन
अगेन्स्ट वुमेन)
सीडो ने उत्पीड़न की परिभाषा को बढ़ाकर उसमें महिला उत्पीड़न को भी
शामिल कर लिया है। सीडो के अनुसार पारम्परिक धारणाएं जो महिलाओं को
पुरुषों से गौण मानती हैं या उनकी
रूढ़िवादी भूमिका तय करती हैं,
उनकी वजह से महिलाओं पर अनेक तरह से अत्याचार हुए हैं जैसे
पारिवारिक अत्याचार, जबरन विवाह, दहेज हत्या इत्यादि। महिलाओं पर
इस तरह के शारीरिक और मानसिक अत्याचारों का परिणाम है,उन्हें समाज
में समान दर्जा मिलने से वंचित करना एवं उन्हें उनके मानवाधिकारों
का प्रयोग करने से रोकना सब उत्पीडऩ के दायरे में आते हैं।
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
विधिक सेवाएँ प्राधिकरण अधिनियम,
1987, की धारा 12 तथा
नियम 1996 के नियम
19 के अन्तर्गत मुफ्त कानूनी सहायता निम्न को मिल सकती हैः-
(क) कोई भी भारतीय नागरिक जिसको सभी साधनों से वार्षिक आय पचीस
हजार रूपये से अधिक नहीं है। (उप-मंडल स्तर, जिला स्तर, उच्च
न्यायालय),
(ख) कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी सभी साधनों से वार्षिक आय, पचास
हजार रूपये से अधिक नहीं है (उच्चतम न्यायालय स्तर पर)
(ग) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्गो के सदस्यों
को,
(घ) देह व्यापार में पीडि़त अथवा बेगार (बन्धुआ मजदूरों) को,
(ड़) महिलाओं को,
(च) नाबालिग बच्चों जैसे बच्चे अट्ठारह वर्ष तक की आयु के ऐसे बच्चों
को जो संरक्षण और प्रतिपालन अधिनियम
1890 के अन्तर्गत प्ररिपालक
की देख रेख में हों,
(छ) मानसिक रोगियों या विकलांग व्यक्तियों को जैसे कि अंधे, बहुत
कम दिखाई देने वाले, बहरे, कमजोर दिमाग वाले, लूले लंगड़े व
कुष्ठ रोग से पीडि़त रहे व्यक्तियों को,
(ज) सामूहिक संकट, मानव जातीय हिंसा, जातीय अत्याचार, बाढ़ सूखा,
भूचाल अथवा औद्योगिक विपात्ति से पीडि़त होने के कारण अनर्जित अभाव की
परिस्थितियों के अधीन व्यक्तियों को,
(झ) श्रमिकों को,
(ञ) ऐसे व्यक्तियों को जो देह व्यापार (निवारण) अधिनियम,
1956
की धारा (2) के खंड (छ) के अंतर्गत अभिरक्षण में रखे गये हो तथा
किशोर न्याय अधिनियम
1986 की धारा (2) के खंड (ज) के अंतर्गत
किशोर गृह में अभिरक्षित व्यक्तियों को,
(ट) मानसिक अस्पताल या नर्सिंग होम में दाखिल व्यक्तियों को,
(ठ) ऐसा कोई केस जिसके निर्णय से गरीब तथा कमजोर वर्गों
से सम्बन्धित
अधिकांश बहुसंख्यक व्यक्तियों के मामले प्रभावित होने की संभावना
हो,
(ड) उन विशेष मामलों में ऐसे किसी व्यक्ति को जिसके लिए अभिलिखित
कारणों के लिए विधिक सेवा का पात्र समझा जाए चाहे वहां साधन
परीक्षण संतुष्टि् न भी हो
(ढ) उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के आदेशनुसार अहम
केसों
में
(न) यथार्थ लोकहित की दशा में किसी व्यक्ति को।
मुफ्त कानूनी सेवा निम्न तरीके से दी जा सकती हैः-
(1) कोर्ट फीस, तलवाना, गवाहों का खर्चा, पेपर बुक तैयार करवाने
का खर्चा, वकील की फीस तथा अन्य खर्च जो कानूनी कार्यवाही करने मे
लगते हो, ऐसे सब खर्चो की आदायगी से।
(2) कानूनी कार्यवाही करने में वकील द्वारा पैरवी की फीस अदा करके।
(3) कानूनी कार्यवाही के
फैसलों, आदेशों टिप्पणी
या ब्यानों की
प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए लगे खर्चे की भरपाई करके।
(4) अपील की पेपर बुक तैयार करने के लिए ताकि इसमें विधक
कार्यवाहियों के लिए संबंधित खर्चे जैसा कि टाइपिंग, अनुवाद,
प्रिंटिंग वगैरा पर किये गए खर्चे की भरपाई से।
(5) विविध दस्तावेजों, का प्रारूञ्पण/ड्राफ्टिंग प्राप्त करने के
लिए किये गए खर्चे की आदायगी से।
मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए निम्न
को सम्पर्क किया जाना
चाहिए-
(1) उच्चतम न्यायालय पर :-
सदस्य सचिव,
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण
12/11, जामनगर हाऊस,
नई दिल्ली, पिन कोड-
110011
या
सचिव,
उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति,
109, लायर्स
चैम्बर्ज,
पी.ओ.विंग, सुप्रीम कोर्ट
कम्पाऊड,
नई दिल्ली, पिन कोड-110011
(2) उच्च न्यायालय परः-
कार्यकारी अध्यक्ष / सदस्य सचिव
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण,
एस.सी.ओ. न.-20 पहली मंजिल,
सैक्टर 7 सी, चण्डीगढ -160019
पंजीकरण अधिकारी (रजिस्ट्रार)
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय एवं सचिव
उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय, चण्डीगढ़
पिन कोड - 160001
(3) जिला स्तर पर :-
जिला एवं सत्र न्यायाधीश व
अध्यक्ष / मुख्य दण्डाधिकारी
एवं सचिव,
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण
नोट :- अगर प्रधान कार्यालय में किसी जिला एवं सत्र न्यायाधीश की
नियुक्ति नहीं की गई है तो मुफ्त कानूनी सहायता के लिए याचिका मुख्य अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, वरिष्ठ अतिरिक्त जिला
सत्र न्यायाधीश / वरिष्ठ् अधिकारी को दिया जा सकता है।
(4) उप मंडल स्तर पर -
अतिरिक्त सिविल जज
(सीनियर डिवीजन)
एवं अध्यक्ष उप-मंडल
विधिक सेवा समिति ।
महिलाओं के सहायतार्थ सरकार ने जिला स्तर पर समितियों का गठन किया
हुआ है, यह समितियां महिलाओं की हर संभव सहायता करती हैं।
जिला जनसंपर्क एंव कष्ट निवारण समिति
इस समिति द्वारा महिलाओं सहित सभी वर्गों के सभी प्रकार के मसलों
का मौके पर ही निवारण करने का प्रयास किया जाता है। इस समिति का
अध्यक्ष माननीय
मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, संसदीय सचिव,
विधायक आदि में से कोई भी हो सकता है तथा समिति के उपाध्यक्ष जिला
के उपायुक्त होते हैं। इसके सदस्य वरिष्ठ अधीक्षक, वरिष्ठ अधिकारी, गैर सरकारी संगठनों के सदस्य, बुद्धिजीवी व समाजसेवी होते
हैं। इस समिति की मीटिंग के दौरान सभी विभागों के आला अधिकारी
उपस्थित होते हैं ताकि शिकायत का मौके पर ही निवारण किया जा सके।
जिला यौन उत्पीड़न समिति
उच्चतम न्यायालय के
फैसले (विशाखा बनाम राजस्थान) के
आदेशानुसार प्रदेश सरकार ने हर जिले में एक समिति बनाई है।
कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, स्कूल, कॉलेज,
अस्पताल, निजी व सरकारी
दफ्तर, न्यायालय परिसर, बस स्टैंड इत्यादि
सार्वजनिक स्थानों पर छेड़छाड़ व यौन उत्पीड़न करने वालों पर लगाम
कसने हेतु इस समिति का गठन किया गया है। इस समिति के सदस्यों में
प्रत्येक जिले के उपायुक्त, सब डिविजन मजिस्ट्रेट, पुलिस कप्तान,
हर विभाग के आयुक्त, रजिस्ट्रार पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
चंडीगढ़, गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।
जिला दहेज उन्मूलन सलाह कार्यसमिति
सरकार ने दहेज की बढ़ती समस्या को देखते हुए हर जिले में दहेज
उन्मूलन समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्ष कार्यक्रम
अधिकारी/लेडिज सर्कल सुपरवाइजर होती हैं, तथा इसके सदस्यों में
बाल विकास परियोजना अधिकारी, मुख्य सेविका तहसील कल्याण अधिकारी, दो
महिला समाज सेविकाएँ शामिल होती हैं।
महिला उत्पीड़न के खिलाफ समिति का गठन
केंद्र सरकार के आदेश पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के
तुरंत निवारण हेतु जिला स्तरीय समिति बनाई गई। इस समिति के अध्यक्ष
जिला उपायुक्त होते हैं तथा आरक्षी अधीक्षक, मुख्य न्यायिक
मजिस्ट्रेट, जिला न्यायवादी, कार्यक्रञ्म अधिकारी जिला बाल विकास
योजना, लेडिज सर्कल सुपरवाइजर, दो महिला समाजसेविकाएं, जिला के
दो वरिष्ठ वकील (जिसमें एक महिला वकील अनिवार्य है) तथा कोई अन्य
सदस्य हो सकते हैं।
इस समिति का कार्य निम्न प्रकार हैः-
महिलाओं के अधिकारों को लेकर उचित कदम उठाना।
महिलाओं पर अत्याचारों की शिकायत को दर्ज कर, जाँच कर
फैसला सुनाना।
महिलाओं पर हुए अत्याचार की जाँच करते समय जिला पुलिस/जिला
मजिस्ट्रेट/जिला न्यायालय के साथ समन्वय बनाए रखना।
महिलाओं के खिलाफ फौजदारी मुकद्मा दायर होने पर उन्हें मुफ्त कानूनी
सहायता प्रदान करना।
स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा माँग किए जाने पर कानूनी मदद व सलाह देना।
महिला उत्पीड़न के
केसों की सुनवाई के दौरान उसकी मदद करना व
जाँच करना।
परिवार परामर्श
केंद्र, कौटोम्बिक न्यायालय/कानूनी सहायता
केंद्र के साथ मिलकर काम करना।
गैर सरकारी संस्था, वकील शिक्षण संस्थान व मीडिया के साथ मिलकर
महिलाओं के साथ कानूनी साक्षरता व उनके अधिकारों के बारे प्रचार व
प्रसार करना।
प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरूपयोग का बिनियम/निवारण) समिति
इस समिति का मुख्य कार्य लिंगानुपात पर
कंट्रोल करना होता है। यह
समिति किसी भी नर्सिंग होम में भ्रूण हत्या, अल्ट्रासाउंड द्वारा
लिंग जांच व अन्य तरीके से कन्या भ्रूण हत्या के विषय में जानकारी
मिलते ही कार्रवाई करती है। इस समिति के अध्यक्ष सिविल सर्जन होते
हैं तथा सदस्यों में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, जिला मलेरिया अधिकारी,
बाल विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी, महिला चिकित्सा अधिकारी, जिला लोक
संपर्क अधिकारी, जिला परिवार कल्याण अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट,
कार्यक्रम अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी, इंडियन मैडिकल
एसोसिएशन के अध्यक्ष, प्रधानाध्यापिका, समाजसेविकाएँ, सचिव जिला
रेड क्रास सोसाइटी व गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।
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