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       जैसा कर्म वैसा फल

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           महात्मा गाँधी ने अहिंसा को सूत्र बना हिंसक अंगे्रजों को बाहर निकाल ब्रिटिश साम्राज्य से देश को आजाद करवाया। जैन संतों ने अपने प्रवचनों में अहिंसा के महत्त्व को समझाते हुए कहा कि अहिंसा का पुजारी भयमुक्त इंसान होता है, वह सच्चाई का सामना सच्चाई से करना जानता है। जबकि हिंसक व्यक्ति कायर होता है, उसे भय लगा रहता है कि यदि मैने सामने वाले व्यक्ति को न मारा, तो वह मुझे मार देगा। यही भय उसे हिंसक बना देता है। धीरे-धीरे यह हिंसक भावना उसकी आदत बन जाती है और वह उन लाचार व बेबस जीवों पर भी हिंसक प्रहार कर देता है जो उसे कभी नुकसान नहीं पहुंचा सकते। भारत में अनेक धर्म हैं। सभी धर्मों ने अहिंसा पर बल दिया है। कुछ धर्मों के लोग व जाति विशेष तो अंडा-मीट की बात ही क्या प्याज-लहसुन तक से भी परहेज करते हैं, लेकिन अफसोस है कि ऐसी महान संस्कृति वाले देश में कुछ लोग लाचार बेबस कन्या भ्रूण की हत्या कैसे कर देते हैं? वे भ्रूण हत्या को हत्या न मान सफाई मानकर बड़ी सफाई से सफाई करवा देते हैं और सफाई की सफलता पर अपने इष्टदेव का धन्यवाद करते हैं। उनके इस सफाई अभियान पर भले ही किसी की नजर न पड़ी हो, लेकिन ऊपर वाले की नजरों से नहीं बचा जा सकता। श्रीमद्भागवत गीता में स्पष्ट लिखा है जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे।

आज दिन में गर्भवती कविता, उसके पति व सास के बीच तय हुआ कि कल सुबह डॉक्टर के पास जाकर अल्ट्रासाउंड करवाया जाए ताकि होने वाले शिशु के लिंग की जांच हो तथा तय हुआ कि यदि 'खुशी' की खबर नहीं मिलती तो सफाई करवा दी जाए। सास बार-बार अपने इष्ट् देवता से पोता होने की दुआ करती हुई, मन्नतें मांगती है। हे भगवान! यदि मेरी पुत्रवधू की कोख में बेटा हुआ तो कल ही जांच के् बाद सीधे आपके मंदिर जाऊँगी और नारियल चढ़ाऊँगी, इन्हीं बातों के बीच रात का खाना खाकर सभी सो गए। कविता भी अपने होने वाले बच्चे के बारे में सोचते-सोचते सो गई। रात को उसे सजीव-सा लगने वाला अदभूत स्वप्न आया। उसने देखा जैसे उसके पेट से एक देवी रूप कन्या निकलती है और कहती है, हे माँ! मुझे भगवान ने तेरी कोख से पैदा होने का आदेश दिया है। मुझे इस संसार में आकर अनेक महवपूर्ण कार्य करने हैं। मुझे इस संसार वासियों को वैज्ञानिक बन प्रकृति के गुढ़ रहस्यों के बारे में ज्ञान देना है। नई-नई औषधियों का अविष्कार करना है। गरीब असहाय लोगों की सहायता करनी है। लोगों की तुच्छ व संकीर्ण सोच को बदलना है। माँ, जैसे अभिमन्यु ने गर्भ के दौरान ही द्रोपदी और अर्जुन की वार्तालाप सुन अभेद चक्रञ्व्यूह को भेदने की कला का ज्ञान हासिल कर लिया। मैंने भी आपकी, पापा और दादी मां के साथ हुई बातचीत व निर्णय सुन लिया है। मुझे पता है कल सुबह आप डॉक्टर आंटी के पास जाकर अल्ट्रासाउंड करवाएंगी और गर्भ में मेरी उपस्थिति, बेटी के रूप में पाकर दुःखी होंगी और आप सब मिलकर मेरा कत्ल कर देंगे। आप और मेरे पापा, डॉक्टर आंटी को मेरे कत्ल की सुपारी देंगे और हत्यारिन डॉक्टर आंटी मेरे शरीर केञ् छोटे-छोटे टुकड़े कर मुझे मार देगी।

माँ! मुझे अपने मरने का इतना दुःख नहीं होगा, जितना दुःख मुझे इस बात का होगा कि मेरा कत्ल मेरे माँ-बाप की सहमति से हो रहा है। मुझे दुःख होगा कि मेरे कत्ल के समय मेरी माँ को असहनीय मानसिक व शारीरिक वेदना सहनी पड़ेगी और कत्ल के बाद शरीर में उत्पन्न होने वाले विकारों के साथ शेष जीवन बिताना होगा। माँ! मैं जीना चाहती हूँ, भगवान ने मुझे जिस कार्य के लिए भेजा है, उसे पूरा करना चाहती हूं। माँ मैं तुम्हें कष्ट नहीं दूँगी, घर के कामों में तेरा हाथ बताउंगी, तेरे दुःख-सुख में तेरा साथ दूंगी। मेरे बड़ी होने पर तुझे और पापा को शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ेगी। मेरा वादा है आप शान से सिर उठाकर कहेंगे कि ये मेरी बेटी है। मुझ पर आपको नाज होगा। देश को नाज होगा। माँ! तुम माँ हो, ममता करो न कि निर्ममता पूर्वक मेरी हत्या। तुम हत्यारिन मत बनो, माँ तुम हत्यारिन मत बनो।

अचानक घबराकर कविता नींद में बुदबुदाने लगती है। मैं हत्यारिन नहीं, मैं हत्यारिन नहीं। साथ में लेटे उसके पति सुरेश ने उसे जगाया। पसीने से तर-बतर कविता को पानी पिलाया। कविता अपने सपने के् बारे में पति को बताती है तो पति ने नींद का बहाना कर कहा सपना तो सपना होता है, सो जाओ।

कविता पुनः सोने का प्रयास करती है, लेकिन नींद उससे कोसों दूर चली जाती है और स्वप्न के बारे में सोचते-सोचते सुबह हो जाती है। बुझे मन से बिस्तर त्याग, नाश्ता तैयार करती है और पूर्व नियोजित कार्यकम अनुसार तैयार हो सास व पति के साथ डॉक्टर के पास पहुंच जाती है अल्ट्रासाउंड करवाने। आखिर स्वप्न सच निकला। डॉक्टर ने जय माता की कह इशारा किया कि गर्भ में पल रहा शिशु लडक़ा नहीं लड़की है। उल्लेखनीय है कि अल्ट्रासाउंड संचालक अभिभावकों को गर्भस्थ शिशु के लिंग की जानकारी विभिन्न प्रकार इशारों से देते हैं, जिसमें 'जय माता की' मादा भ्रूण के लिए तथा 'जय भोले शंकर' की नर भ्रूण के लिए कहना शामिल है। सुबह शाम देवी माँ की आराधना करने वाले कविता सहित उसके ससुरालजनों को डॉक्टर के मुख से जय माता की का नारा अप्रिय लगा, आज तो उनकी भोलेनाथ का जयकारा सुनने की प्रबल इच्छा थी। मायूस हो कविता की सास ने पूर्व निर्णित फैसले से डॉक्टर को अवगत कराया और पैसे की लोभी डॉक्टर ने अजन्मी बच्ची के माँ-बाप, दादी के कहने पर फौरन हत्या कर दी। कविता मन पर बोझ लिए घर लौट आई।

कुछ समय बाद पुत्रेच्छा लिए कविता पुनः गर्भवती हो गई। फिर वही पुराना विचार-विमर्श, वही गर्भ जांच की चर्चा हुई। इस बार भी उस रात की भांति एक अनोखा स्वप्न आया। इस बार कविता ने स्वप्न में देखा कि उसकी कोख से एक देवदूत निकलता है और बड़े ही आदर से प्रणाम करता है और कहता है, हे देवी! आपके पूर्व जन्मों के सद्कर्मों के कारण मैंने (सदगुण) आपकी कोख से उत्पन्न हो संसार में अनेक महत्व पूर्ण कार्य करने थे। देश के सर्वोच्च स्थान पर बैठ देश की जनता की सेवा करनी थी। देश की जनता की भलाई के अनेक कार्य करने थे। समाज की दिशा बदलने और दशा सुधारने के लिए नई तकनीक विकसित करनी थी, लेकिन आपने इस जन्म में कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित कर्म कर पूर्व जन्म के सद्कर्मों के फल को समाप्त कर दिया है। मैं (सदगुण) ऐसी कोख से जन्म नहीं ले सकता, जिसमें कन्याओं की स्वयं माँ की सहमति से हत्या की गई है। मैं अपनी ही बहन की हत्यारिन की कोख से जन्म नहीं ले सकता। आपने ममतामयी माँ के स्थान पर निर्दयी माँ का स्थान पा लिया है। आपकी कोख में मेरा दम घुट रहा है। मैं आपकी कोख का त्याग कर रहा हूं, मेरे स्थान पर मेरी परछाई (अवगुण) आपकी कोख से जन्म लेगा।

नहीं चाहिए मुझे ऐसा अवगुणी पुत्र, हे भगवान! मुझे माफ कर दो, माफ कर दो। कविता बुदबुदाने लगी, पति ने फिर उसे उठाया, और पानी पिलाया। कविता का सपना सुन उसका पति मात्र सपना है, सपनों की ओर ध्यान नहीं देते, कह सो गया। कविता सुबह होने का इंतजार करने लगी। सुबह वही क्रम दोहराया गया, सपना सच हुआ। कविता की कोख में लड़का देख, अल्ट्रासाउंड संचालिका ने भोले शंकर की जय-जयकार की। कविता खुश थी, पुत्रेच्छा पूरी होने पर, परंतु आशंकित थी, सपने के पूर्ण सत्य होने पर।


 

 


 

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